मूल्यांकन | Mulyankan

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Mulyankan by कपिलदेव सिंह - Kapildev Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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द मूल्यांकन (१) राष्ट्रीय काव्य सबके सम्बन्ध में ससान रूप से सत्य है...... “***»«»-“ईस विरोध को देखकर कुछ लोग भ्रम में पड़ जाते हैं। बात यह है कि भारतेन्दु-साहित्य का निर्माण उस काल में हुआ जब कि विदेशी शक्ति के विरुद्ध, उख विद्रोह के बाद, जिसे अंग्रेज ऐतिहासिकों ने सिपाही-विद्रोह मात्र कहा है, देश में सर्वत्र निराशा, उत्साइहीनता और हाहा- कार मचा हुआ था। सिपाही विद्रोह का तो अंग्रेजों ने अपनी आधुनिक शक्ति से दमन कर दिया था। उस दुर्दिन मे असहाय रौर परास्त जनता अंग्रेजी राज्य का मुह द ताकने के सिवा और क्या कर सकती थी? भारतेन्दु की राजभक्ति की रचनाओं में हम वास्तव में तत्कालीन विवशता- पूर्ण स्थिति की ही दयनीय भावना पाते हैं |? -- | ( ४० ८३-८४ | ) “इस सम्बन्धमे इस वात की भी चर्चा कर देना अप्रासं- गिक नहीं होगा कि इस क्षेत्र में भारतेन्दु की कला बहुत कुछ अंशों में निराशाबादी है। “मारत दुर्दशा” और “नील-देवी” में जो विषादान्त दृश्यों की उन्होंने योजना की है, वह उनकी इसी मनोबृत्ति का सूचक है। वास्तव में सिपाही-विद्रोह के (गहरे आघात और पतन के बाद देश में जो एक निराशापूण हाहाकार व्याप्त हो गया था, भारतेन्दु को वाणी में हम उसी का स्वर चौर आतैनाद सुनते है । इस स्थिति में भारतेन्दु ने यदि आशा का संचार किया भी हे तो भारत के आचीन गौरवशाली इतिहास की ओर संकेत करके ही। “:- ~य भाव कवि कं सच्चे हृद्य ऊ उद्गार थे । यह्‌ सचाई ओर सफाई भारतेन्दु की कला की सवे बड़ी शक्ति है | उन्होंने एंक शब्द भी ऐसा नहीं कहा है जो उनके सच्चे हृदय




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