अस्तित्व का प्रवाह | Astitva Ka Pravah

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ध्रीं स्वप्न अपनी ही कल्पिनिक रचना जिसका सष्टा भौर हृष्टा है स्वयं का अचेतन मन और इसीलिये हम उसको कहते है--स्व-पन म हमारे जो दिख रहे है घमं, नीति, आचरण भरे व्यवहार वे कभी नही छू सकते हैं जीवन क्योकि वे केवल हैं अपने ही फैलाए हुए स्वप्न ~-~----~~----------~---------~----~-~~---------------------------- ~~~ ~~~ अस्तित्व का प्रवाह : सोहुनराज कोठारी & -া ১৫৫৫১৫১৫৫১২:




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