तपस्वी तिलक | Tapaswi Tilak

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Tapaswi Tilak by गोकुलचंद शर्म्मा - Gokul chand Sharmma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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विशारद महाकवि ग्लेडस्टन का यह वाक्य स्मरण रखता: चाहिए:--- 94, 00050 1065 108 021160. ०३५००; 10 0016108 076 00581070 07 8000100906১ प्रो) कला 16 18 [00560 110050105 17560 1109 016288६ 0£ 81000162,? अर्थात्‌ वह मनुष्य जो उन रस-भावादि को ज्ञिन से वह ख॒य॑ प्रभावित हुआ है दूसरे के हृदयज्ञम कर सकता है वाग्मी छहा जाना चाहिए। लोकमान्य के विषय में कप ০ यह बात अक्षुरश: सत्य हैं| एक बार सिटिजन पन्न ने लिखा थाः-- # 0७, पृषत्‌ 18 शर०06 80 07007. 398 8०४७१ 1र्पेप्राए68 111 0960 71968010, पिच्च ए0एपं5 05০5 ০ 000 19 0४008 সহ] 105 00055000005 06100 20৭ [১100৮ एप 118 880 1९819९१8, ६16 00099 73713170981] 870101706 0£ 10718 10609 230. 0079 0৮১6০৮-০৫০9০৮ ৪৮1০ 08 0৪ হুম 3208 ৪৪ ৫, 22870 20 0159 20000. 0£ 1518 200191509 + अर्थाद्‌ কও বিক্তচ্চ वारसी नहीं है। पे बड़ बढ़े अलड्भारों की झेझट में कभी नहीं पड़ते । उनके बराच्द उनकी सरर घौर स्पष्ट मुखाकृति के अनुरूप निकलते हू। परन्तु, उनक्नी सत्यता, उनका बाइ बिल का सा कथन-सारल्य र उन के तक की तत्तामयी शैली इन के भोताओं फे मस्तिप्क मे जादू का जार पूर देते है । तिलक की बुद्धि सर्वतोगामिती, विशद और विस्तीयी এ অন विचार प्रगल्स, मनोजत्ति उदात्त और पाणिडत्य




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