जलपरी | Jalpari
श्रेणी : कहानियाँ / Stories
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
163
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(१६)
बह रहा,था । कौला ने अलयन्त-कोमल्ता ॐ साथ अपने हाथ से उसके:सुं
प्र से बालों को हठाया। साँस देखने के लिए घीरे-से उसके मुँह के ऊप
झुकी । कौला ने उसे ग्रौर से-देखा । उसे माछ्म हुआ कि कुन्दन सुन्दर है
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( ५ ।
कुन्दन की प्राण रक्षा के लिए इस समय कौला अपना क्या नहीं दे
डालती १ अब उसके लिए कोई भी वस्तु इतनी बहुमूल्य नहीं थी. जितना
कि कुन्दन का जीवन । परन्तु वह करे तो वया करे १ वह सोचने लगी
“दादा यदि चट्टानों पर चढ़ भी सके, तो बड़ी कठिनाई से यहाँ तक आ
सकेंगे । तब कया इसे घसीट कर कुछ दूर ऊपर के चल, जिससे पानी को
लहंरें पास तक न आ सके ।
यही निचय कर कौला कुस्दन को उठा कर लने लगी ! उसको अपनी
ताकत पर आइचय हुआ । परन्तु, वास्तव में इस समय उससे बहुतु अधिक
बल आ गया था। धीरे-धीरे बढ़ी कोमलता के साथ ही, चट्टानों पर বত
इस प्रकार गिरती-पड़ती जिससे कुन्दन को चोट न लगे बह उसे रेत के'सिरे
पर ऐसी जंगह ले आईं-जहाँ अगले दो घुठे तक जल के पहुँचने क्री कोई
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.. यहाँ उसको दादा खढ़ा था। वह दरवाजे से देख रहाँ था। कौंला ने
कहा, “कुन्दन सामने वाले गडढ़े में गिर कर चट्टानों से टकरा गया थां।
देखो इसके सिर में क्रितनी चोट आई है |
मेलाकी ने उसके शरीर को देंख कर कहा, “कौला, में तो समझता हूँ '
यह मर गया है । हु
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4 ४ अं = ह
“नही दादा, अभी यह मरा नदीं है । लेकिन शायद यद मर रहो है ।
में शीघ्र खेत की ओर जाती हूँ । ॥
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