दृष्टान्त - सरोवर | Drishtant Sarovar
श्रेणी : कहानियाँ / Stories
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
224
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)६ ईन, #
होगी, अर्थात् जसा व्यवहार हमारे साथ होगा--वेसा ही
तुम्दारे साथ फिर तीसरे पडित जी कहते हैं कि मन्दोदरी
विण से कहती है कि-यह अधा-घुन्ध कब तक
चलेगी । उसके बाद चोय पंडितञ्ी राबण से कहलवाते
हैं-“जब तक चले, तभी तक सहीं ।
उप्त विचित्र मन्त्री की बुद्धि से राजा बड़ा प्रसन्न
'हुआ और चारें पंडितों को सनन््मान पूर्वकं २००-
২০০ ০ दक्षिणा देकर विदा किया। तालय यह है
जिस राज्य का राजा यदि सूख हो और मन्त्री बुद्धिमान
हो तो गुशियों, विद्वानों एवं मूर्खों तक का सन्मान
करा देता र।
साया हु
खुद माया मैं फेंस रहा, फिर काहे पछताए।
“ यदि तू उसको त्याग दे, तो मुक्ति-पद पाए ॥
कोई संसारी मनुष्य समर्थ श्रीरामदामजी के पास
गया और बोला कि महाराज मुझे माया ने ऐपा पकड
रक््खा है कि छूटना सुश्कित है, आप कृपा करके उसे
छुड्ा दीजिये । स्थाप्ती ने सोचा यह उपदेश से तो शीघ्र
समझेगा नहीं, हसलिये इसे प्रत्यक्ष प्रमाण देना चाहिए।
अत; आप एक किले की चहार दोकारी एर् चद् ष् ।
ओर उसे भी साथ लेते गये, चहार दोवोरी से लगा-हुआ
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