समय का फेर | Samay Ka Pher
श्रेणी : उपन्यास / Upnyas-Novel
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
19 MB
कुल पष्ठ :
87
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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# समय का फेर # ७
ओर उनसे पूछता कि इन बच्चों की हेसियत क्या है ? तो बहुधा
वह् लोग अखल बातत बताने क बजाय भटी बाते कह कर शादी
काट देते थे ओर जब कभ। कोई उसके गांव का या विराद्री का,
इन बुरे कमं का उनसे जिक्र करता तो यह बच्चा यह कह कर
जवाब देता “सही, उन लोगों ने सच कहा, यहां तो खाने का
ठिकाना द्वी नही हे कहां से नई बहुओं के लिये होगा।” इख
जवाब को सुन कर कहने वाला खुद शरमा जाता ओर कहता
“जब तुम ही लोग उसके समथंक हो तो उसका क्या इलाज 1
हां, इन बच्चों की मां पर इन बातों का काफी असर होता ओर उस
वक्त जब वह अपने सामने देखती कि महल्ले, अड़ोस पड़ोस ओर
बिरादरी के हम उम्रवात्षे ओर यहां तक कि उनसे छोठे बच्चों की
शादियां हो गई हैं ओर हो रही हैं और इस पर जब वह अपने
पट्टीदार, गांव वालों फे बुरे कमे को सुनती तो वह् जल मुन कर
कबाब हो जाती थी। लेकिन जब कभी अपने बच्चों से कद्ठती
तो वे जबाब देते, “उन लोगों ने क्या बुरा किया ।” कहावत
मशहूर है :--
“खाने को यहां नहीं, चली भाड़ भुनाने”?
सही, बह लोग हम लोगों के हक में अच्छा कर रहे हैं। क्योंकि
एक दूसरे घर की सत्री को लाकर उसकी जिन्दगी को नके बना...
देना कहां तक उचित ठद्दरा। जब अपने ही खाने का ठिकाना
नहीं। मां रोधो कर अपने दिल की भभकती हुई आग बुम्ाती
थी। इस तरह दो चार साल तक चलता रहा. लेकिन जब
इन बच्चों ने देखा कि बुड्ठी मां कब तक अपने हाथों को जलाती
रहेगी, जबकि उसका उठना बैठना दुशवार होता जा रहा है ।
न आखों से पहले की तरह दिखाई ही देता ओर ओर न हाथ
पेर ही फुरती से चलता है, पका आम् ठहरी । जब कभी भी एक
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