प्राचीन भारत में अंतर्राष्ट्रीय सम्बन्ध एक अध्ययन | Prachin Bharat Me Antarrastraya Sambandh Ek Adahayan

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Prachin Bharat Me Antarrastraya Sambandh Ek Adahayan by श्रीमति रश्मि अग्रवाल - Shrimati Rashmi Agrawal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अवल ष्म ]} प्रचीन भए म जन्तरष््रीय रष्बन्य ]] प्राचीन भारत का स्वरूप : राजनीतिक स्थिति- भारत का राजनीतिक वातावरण उसके इतिहास की अनेक करवयो के साथ रूप बदलता रहा है । प्राचीन काल में देश की राजनीति मे नाना प्रकार के प्रयोग किये जा चुके थे। उस समय वर्तमान को भोति सम्पूर्णं भारत एक राजनीतिक इकाई के रूप में न होकर छोटे-बड़े अनेक राज्यों में विभक्त था।' राजाओं कौ साग्राज्यवादी प्रवृत्तियों, गण एवं संघ राज्यों की आन्तरिक दलबन्दी तथा विभिन्‍न व्यवस्थितं ओर अव्यवस्थित राजनैतिक इकाईयो का एक साथ अदभुत संगम दृष्टिगोचर होता है। भारत का राजनैतिक मानचित्र शासन पद्रतियो कौ विविधताओं से परिपूर्ण एवं राजनैतिक संगठन के अभाव से ग्रसित था। देश में एक केन्द्रीय राजनैतिक सगंठन का पूर्णत: लोप था। विभिन्‍न राजनैतिक इकाईयाँ पारस्परिक सहयोग अथवा विरोध के वातावरण में थी। आधुनिक विज्ञान प्रधान आणनिक युग में अन्तर-राज्य-राजनीति का अपनी जटिलताओं के साथ जैसा विकसित रूप दृष्टिगोचर होता है, वैसा विकसित रूप प्राचीन युग के भारत एवं विश्व के अन्य भागों मे अनुपलब्ध था। किन्तु प्राचीन भारत कं सदर्भं में इस तथ्य को भी नर्ही नकारा जा सकता हे कि तत्कालीन भारत-भूमि के राज्यो ने पारस्परिक सबन्धों के संचालन हेतु ठेसी अन्तर-राज्य-राजनीति कौ उत्पति कर ली थी, जो कालान्तर में पर्याप्त विकसित भी हुई। अन्तर-राज्य-राजनीति का यह विकास ` उसके सैद्धान्तिक ओर व्यावहारिक दोनों ही क्षेत्रों मे, तत्कालीन युगो कौ परिस्थितियों के अनुरूप प्रकट हुआ। ७ ०५ विद्वानों का मत है कि भारत मे अन्तर -राज्य-राजनीति का श्रीगणेश वेदिकः एवं उत्तर वैदिक कालः मे हो चुका था, किन्तु एेतिहासिकयुगीन अन्तर-राज्य-राजनीति का स्पष्ट परिचय 1 ड0 राजबली पाण्डेयः प्राचीन भारत हिन्दूकाल, पृ0 66 आचार्य रमेश चन्र शास्त्री : भार में पंचायती राज, पृ० 77-22 ` रागेय राघव : प्राचीन भारतीय परम्परा ओर इतिहास, यृ 181 2. डॉ० राम जी उपाध्याय : प्राचीन भारतीय साहित्य कौ सास्कृतिक भूमिका, पृ 578 3. ए. एस. अल्तेकर : प्राचीन भारतीय शासन पद्धति, पृ 214-215




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