कथा शुरू होती है | Katha Shuru Hoti Hai

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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उस सिर को चाहे शिखर से लुढ़का दीजिए चाहे मैदान में रखवा दीजिए कोई फर्क नही पड़ता चाहे गड़वा दीजिए 1 जख्मी होते हए टूटते आकाश को 1 बीयू द्वारा [बीसू की पहचान, पांच पेट / রত उसके, वीची वच्चे] “ भुजाओं पर मेलते शीने षर सहेजते मौर -- का आदिस्ता हर आहिस्ता « ५ धरती पर रस एड़ी से छुचलते देखा देषा ऐसे में बीमू को होते जस्मी और परती को सहूजुह्यन कदा घुरू होगी है / 17




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