श्री गणेश मुनि शास्त्री : साधक और सर्जक | Shri Ganesh Muni Shastri Sadhak Aur Sarjak
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
158
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अध्याय १
साधत के प्रस्थान-बिन्दु : एक शब्दचित्र
संझला कद !
হী !! ह
ससस््तक पर तकंजाल-सी उलझी रजतवर्णो केश-राशि !![!
भव्यनेत्र--अनु राग और प्रज्ञा-हृष्टि के दो चषक !
श्वेत-शुद्ध खादी के परिधान--स्वच्छ और वैराग्यपूरित हृदय के
संकेत-चिह्न !
नंगेपाव--संसार के दुर्गंम स्थलों पर पहुँचने की उत्कट अभिलाषा
के प्रतीक !
,चश्से के पीछे झाँखती आँखें--गंहन अच्तहं ष्टि और मानवहृदय की
पहचान को उजागर करती दीप शिखा !
अधरों पर मधुर स्मित-रेखा--मानो दुनिया के आडस्बरों पर दीवाने '
जन-समाज को भरसक रोकने की स्नेहिल चेतावनी ! व्यंग्य नही, अपितु
ममता की पहली फुहार !
संथरगति--साधक के गम्भीर चिन्तन की प्रथम पहचान ! जल्दबाजी
में कुछ भी अशोभनीय न करने की हढ़भीति !!
साय-व्यवहार--सज्जनों के साथी, दुर्जनो से कोसों दुर ! साधु-
समागम को उत्कठ आकांक्षा के प्रतीक ! गुरु-भार्ईयों को सद्-संगति !
शिष्यों को वेराग्य की उत्कट-साधना के सबल प्रशिक्षक !
| व्यवसाय--अध्ययन-मनन-प्रवचन-ज्ञानउर्मियों के प्रत्यक्ष अनुभवी
साधक ! धर्म, दर्शन तथा काव्य के आराधघक ! वैराग्य तथा तप की
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