बालकों का पालन - पोषण | Balako Ka Palan Poshan

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Balako Ka Palan Poshan by एस. टी. आचार - S. T. Acharमाधव उपाध्याय - Madhav Upadhyay

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माधव उपाध्याय - Madhav Upadhyay

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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नवजात शिशु १४५ चाहिए, क्योकि प्रायः इसकी पपडियां जम जाती हैं और उससे वच्चे को तकलीफ होती दहै। यदि विकौटाणुङृत पट्टी (गाज) उपलब्ध न हो सके, तो तो साधारण कपड़े की पट्टी को ही उबालने के बाद सुखाकर विकीटाणुकृत करके बाधा जा सकता है। यदि नाभि के आसपास लाली या सृजन दिखाई पड़े, तो डाक्टर की सलाह लेनी चाहिए नाभिनाल के टुकड़े के गिर जाने के बाद उसके नीचे की सतह मुलायम रहती है और उसको सूखने में कई दिन लग जाते है! इसलिए इस सतह्‌ को साफ भौर सूखा रखना चाहिए, ताकि उसे कीटाणुभ्रों की चृत न लग सके । लंगोटी को हमेशा नाभि की मुलायम सतह से नीचे बांधता चाहिए जिससे वह हिस्सा गीला न हो सके । अगर यह सतह गीली हो जाये और उसमें से कोई तरल पदार्थ बहने लगे, तो उसकी देखभाल और भी सावधानी से करनी चाहिए और फौरन डाक्टर को दिखाना चाहिए । वच्चे का विस्तर वहतर तो यही होगा कि बच्चे का बिस्तर भी नहीं होना चाहिए कि जिससे मां को वच्चे की देखभाल और सार-संभार में परेशानी हो । । भारत में जन्म के वाद कई हफ्तों तक बच्चे को मां के साथ ही सुलाया जाता है। यह ठीक नहीं है और जहांतक हो सके, इससे बचना चाहिए। ऐसी कई घटनाएं हो गई हैं जिनमें मां को गहरी नींद आ जाने से बच्चे उसके नीचे दव गये हैं । सरदियों में, जबकि चित्र कंबलों व रजाइयों का उपयोग किया जाता है, कपड़े का भूला ऐसा खासतोर पर होने की श्रांशका हो




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