काव्यालकार | Kavyalankar

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Kavyalankar by डॉ. नगेन्द्र - Dr.Nagendra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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& स्थिति मे.केवेख एक विकल्प शेष रह जाता' है कि रुद्रट किसी ऐसे आचार्यवर्ग की शताब्दियों से प्रवांहित' विचारघारा से प्रभावित रही होगा जो इन प्रख्यात आचार्यो से नितान्त अलग रहकर काव्यशास्त्रीय विषयो पर विचार-विमर्श करता चला आया होगा । रुद्रट द्वारा प्रस्तुत अर्थालकारो का वर्गीकरण ही इस मान्यताका एक अन्यः पोषक प्रमाण है । इनसे पूर्ववर्ती आचार्यों के ग्रन्थों में तो इस प्रकार के वर्गीकरण के साक्षात्‌ अथवा असाक्षात्‌ सकेत तक नही मिलते ।* हाँ, उक्त सभी नवीन अलकूकारो को तथा वर्गीकरण को एक ग्रन्थ के माध्यम से सर्वप्रथम काव्यशास्त्रीय जगत्‌ के समक्ष प्रस्तुत करते का श्रेय निःसन्देह रुद्रठ को ही दिया जा सकता है, जो कि अपने-आप मे: एक महत्त्वपूर्ण, स्तुत्य एवं उपादेय प्रयास है, तथा काव्यश्ञास्त्र के अध्येता के लिए अनि- वायंतः अध्येतव्यःविषय हैं--यद्यपि यह वर्गीकरण पूणंत. मान्य नही है । रुद्रट-प्रस्तुतः अनेक- अलकार तो आगे च॑रुकर अनेक आचार्यो द्वारा अधिकाशतः इसी रूपमे ही भपेनाये गए; किन्तु इनका वर्गक्रिरण परवर्ती आचर्यो द्वारा प्रचालित एव प्रसारित नही हंग । अर्थालंकार को चार वर्गो मे विभक्त किया गया है-- वास्तव, ओौपम्य, अति- शय और इकेष । वास्तवमूरक अल्कारो की सख्या २३ है, भौपम्यमूलक अक्कारो की २१, अतिशय-मूलक अलकारो की १२ और इल्ेषमूलक केवल १ ही अलकार गिनाया गया है--श्लेष ।* इस प्रकार यद्यपि कुल ५७ अर्थालकारो को- इस ग्रन्थ मे स्थान मिला है,” तथापि इनमे से निम्नोक्त चार अलकार दो-दो वर्गो- मे रखे गये है--ज से उत्तर भौर समूज्वय अरुकार वास्तवगत भी है और औपम्यगत भी, उत्प्रेक्षा औपम्यगत भी है और अतिशयगत भी, तथा विषम वास्तवगत भी है और अतिशयंगत भी । > किन्तु इन चार अलकारो-केः लक्षणों एव उदाहरणो से स्पष्टत ज्ञात होता है कि ये अपने- ` अपने वं मे भिन्‍न-भिन्‍न ही है। उदाहरणार्थ, 'वास्तवगतः उत्तर अलकार औपम्यगत | उत्तरुअलकार से भिन्‍न है। अतः रुद्रट द्वारां निरूपित अर्थालकारो की सख्या ५७ ही माननी चाहिए, इनसे चार कम करके ५३ नही । रस-प्रकर ण रुद्रट का रस-प्रकरण भी अनेक॑ हृष्टियों से अपनी विशिष्टता रखता है । नि.सन्देह भरत इनसे कई शताब्दी पूर्व रस का प्रतिपादन कर चुके थे, किन्तु रुद्रट देखिए पृष्ठ १६६-१६७ देखिए पृष्ठ २००,२४४,२६१,३१० । इलेष अलंकार के दस भेद गिनाए गये हैं (देखिए---पृष्ठ ३९०), किन्तु उक्त ५७ संख्या में थे भेद सम्मिलित नहीं है, यद्यपि इनमें से कुछ भेद आगे'चलकर स्वतन्त्र अलंकार बन गये । ४. देखिए पृष्ठ २००,२४४,२६१ | > ५ ४ 24 ৫9 बज শট লি ফা তি পি শশী




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