महाराज नन्द कुमार को फांसी | Maharaja Nandkumar Ko Fansi

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Maharaja Nandkumar Ko Fansi by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अनाथ बालक , , খু हीन अनायर बालके कौ दुरवस्था को.देखकर तुस्हाग हृद्य नद पर्ठीजता ? घिक्कार तुम्हारे जीवन को ! और घिक्कार सुम्दारी, दीवानी को ! ५ अथस -मैं आपके चरणों पर हाथ रख- कर कहता हैं. कि रेशर्म ' की कोठी के अ'गरेज-व्यापारियों के अत्याचार को दृर करने के लिए माणपणा से उद्योग क्खेंगा) परन्‍त कौशल से काम लेना पडेगा। चरद्र- दय हीन। पाग्णडी! यदि तुस्दारे हृदय होता तो तम “राजनैतिक कोशल”, “राजनैतिक कौशल” चिल्ला कर देर न,लगाते । इन निराभ्रय, निर्यलों के कष्ट निवारणाय इसी क्षण प्राण -विसजश्न करने के लिए कैयारहोजाने।! , ॥ ~~ . 1 , अथेस--( कुछ हँस कर ) आप सो सिराज की रत्यु के बाद, आज सात-बरस से सुझे “नीच”, “पाखण्डी”, “अधम” आदि सुल- लित शब्दों से विभूषित बरते रहे हैं, परन्तु, आपके उपदेणानुसार कार्यं करके मीरक्रासिम की. कैसी दुर्दशा हुईं, जरा सोचिए तो सदी । ड्ध स्या भेरे उपदेशाजुसार चल कर मीरकासिम की दुदश्ा ‡ इ है यदि चदे धोढा भी शान होता सो 'सुम सहज हो सममं “ सकते थे कि सीरकामिम की दुद'शा उसकी निद यता को ही अवश्य- म्भावी फल है । “यतो धर्मस्ततो जय.” । मैने मीरकासिम को कभी क्रूर और निष्दुर आचरण का उपदेश नदी दिया! सेने क्या उससे यह कहा था कि वह इस प्रकार की निन्दनीय नर-हत्या के द्वारा अपने हाथों को कलङ्कित करे ? नितान्त “कांयरों की, शांति , उसने कई एक निरख श्रगरेलों का आश:बध्च करके अत्यन्त धित प्रर गर्हित काम ' किया। सै,सदा ही उससे सत्य और न्याय का पथ अहण करने के लिए कटता रहा । यदि न्याय-पथ से अष्ट न होता तो-वह कभी न हारता।- अन्याय के मार्ग, का अवलस्ब॒न करके “सजुप्य आपही अपनी शक्ति का हास - करता है 1, मोहान्धकार के कारण तुम इसे नहीं रूमर सकृते+- ~, ओ




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