महाकवियों की अमर रचनाएं | Mahakaviyon Ki Amar Rachnaye
श्रेणी : शिक्षा / Education, साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
176
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)[৫৭ ]
कुछ ही दूर ओर चलकर कैलास के पूर्वोत्तर कोने मे चन्द्रापीड ने
क्ृष्णपक्ष के घने अंधकार के समान वृक्षों का कुंञ देखा । उसमें प्रविष्
होते दी आच्छोद् नाम का अत्यन्त मनोहर सरोवर उसके दृष्टिगोचर
हुआ। वह सरोवर के दक्षिण तट पर जा पहुँचा और इन्द्रायुध से
उतर पड़ा ।
कुछ ही देर आराम के उपरान्त उसने उत्तर दिशा की ओर गीत की
ध्वनि सुनी | गान से आक्ृष्ट बन-सृग ध्वनि के पीछे ही सरोवर के
पश्चिमी तटवर्ती बन की ओर छलाँगे मारते हुए दौड़े जा रहे थे | उस
पञ्िम तट पर चन्द्रिका की भांति घचल चन्द्रभभा नाम की भूमि पर
उसे भगवान् शिव का एक शून्य सिद्ध-मन्दिर दिखाई दिया । बह
मन्दिर मे प्रविष्ट हुआ ।
दक्िण-मूर्तिं के सामने चन्द्रापीड ने व्रह्मासन में वैटी पा्ुपत त्रत
धारण किये हए एक कन्या देखी, जो वीणा-चादन के साथ गा रही थी ।
खेत, सुन्दर अपनी सहज प्रभा से वह् निकटवर्ती भूमि को आमान्ित
कर रही थी | |
वह घाला गीत समाप्त कर उठी और शिव की परिक्रमा कर
उन्दः प्रणाम क्रिया । तदनन्तर उसने चन्द्रापीड़ की ओर देखा और
विनम्र भाव से कहा :--
“अतिथि महाभाग स्वागत } आप इस प्रदेश से कैसे पधार ९ कषा
कर मेरा आतिथ्य स्वीकार करं
“लैसी आपकी आझा' कह कर चन्द्रापीड़ उसके पीछे चला | सामने
एक गुहा दिखायी दी ।
যাহা यर के दोनों ओर भरने भर रहे थे | बल्कल-शेय्या के
सिरहाने वीणा रख कन्या बाहर निकली । पिर पत्त का दोना यना. अभ्य
के लिए भरने से जल भर लायी।
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