अर्थशास्त्र का दिग्दर्शन | Arthshastra Ka Digdarshan
श्रेणी : अर्थशास्त्र / Economics
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
19 MB
कुल पष्ठ :
992
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)विषय-परिचय ] [६
परो महता के मत की श्रालोचना-प्रोः महना के इष्टिकोश मे
दार्शनिकता एवं प्रादर्शवाद का तत्व ग्रधिक है ओर व्यावहारिस्ता
वहूत यम पाई आती ह] श्रालोचतौ कै मतानुमार झावद्यकताएं ब्रार्थिक'
प्रयत्तों का भ्राधार है। इसलिये आवश्यत्ञताप्रों में कमी करने রর प्रथं प्रायिक
जीवन मे शिथितता पैदा करना होगा। चूँकि आवश्यक्ताएं भोतिक सम्यता
का मापदण्ड माग जाता है, इसलिए आवश्यकताम्रो को सीमित रखने का कोई भी
प्रयास ग्राधु नक सभ्यता की प्रगति में बाधक सिद्ध होगा जिसने पसस्वरूप झाज
का म्ये मानव रामाज पुनः रस्ता के पूर्ंदान को प्राम बर लेगा ।
निष्कए-प्रो° महता का दाशनिक (10110500/४/01) हष्टिकोशग भौतिकः
बादी दृष्टिकोण में मेल नही साता। इसलिए दोनो विचारवारामा के बीच वा भार॑
प्रपनाना ही वाछ्तौय है। आवस्ययराग्रों में अत्यधिक वृद्धि तथा प्रत्यधिक कमी दोनों ही
उचित तहीं। प्रावश्पक्रताप्रो की व्रद्धि फो एफ सोमा होनो चाहिये और यहू
समादेशं व प्राथिक प्रिरिथितिमों पर निभेर है।
अर्थशास्त्र की प्राचीन परिभाषाएं
प्री भ्राग्ल अर्थशाद्धियों ने प्रधंशातत्र को 'धतशात्र' या सम्पत्ति विज्ञान! वे
नाम से क्ण है। श्र्पशाह्ष के जनक ग्रादम-म्मिथ (305७) 91010॥) ने कहा है
कि “शर्यशासत्र जातियों की सम्पति का विश्लेषण है) जे० बी० से (1, 13. 8089)
बहते है कि “भरषेशासत्र पह पिज्ञान है जो धत या सम्पत्ति का विवेधन बरता है”?
चाकर ^ ने कहा है कि प्रयंज्ञास्त्र 'शौन की वह शाखा है जो धन से सम्ब-
ন্মিন ২1” इन प्राचीन परिभाषाप्रों ने रन को श्नृचित प्रधानता दी है श्रौर इसके
प्रधान श्रग धन से सम्बन्ध रहने वाले 'मावय' फो ओर उदासीन रहे है। इन लेफ़कों ने
पअ्रनुभव तही किया कि मानव अपनी इच्छाग्रो की पूति एद मानवीय स्तर को ऊँचा करने
6 शा प्रपत्न करता है। इसलिए मातव-अध्ययत ही ध्रमुख और सम्पत्ति गा সান
गोण है।
प्राघीत परिभाष्रों को प्रालोचन/--घत की इस पनुचित प्रधानता वा
যারে हुम्रा कि १६ वी झतास्दी के कुछ विद्वानों ने जिनमे कार्लाईल (090-
1519), रस्किन (एश), विलियम् भोरिस्त (५॥॥॥॥0 »97115) भ्रोर
चार्त्स डिकिस्स (0)॥37)08 1)0)}.095} ध्रादि प्रमुख है, इस विपय को कड्ी লী,
चना की, भर इसे 'कुबेर का सन्देश! (90590 01 819)80)02), “घराणित' गा
शोक पुक्त विजान ` [० ३०१०८०६, गदो शाल ধা হান (1907 त्
०४४७४ 5010106) प्रादि कोतुहलोत्पादक नाम रखे है 1
मनुष्य भौद घन का सापेक्षिक महत्व
इस श्रालोचना या ग्रवांचीन श्रयंराछियो पर् इतना उत्तम प्रभाव पड़ा कि
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