शान्ति उपदेश तत्व संग्रह | Shanti Updesh Tatva Sangrah

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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15 & ओरी चीतरगाथं नमः स्तोत्र संग्रह १-महावीराष्टक-स्तोत्रम्‌ (भावार्थं सहित) यदीये चैतन्ये मुकुर इव भावाश्चिदयितः । सम॑ भांति ध्रौव्य-व्यय-जनिलसंतोऽम्त रहिताः जगत्साक्षी मार्गे प्रकटनपरो भानुरिव यो । पहावीर स्वापी नयन प्थगापी भवतु मे ।॥। ९॥ -- जिनके केवल ज्ञान में ध्रौव्य-व्यय और उत्पत्ति सहित अनन्त चेतन और अच्चेतन पदार्थ दर्पण के समान एक साथ प्रति-भासित होते हैं जो संसार को प्रत्यक्ष करने वाले सूर्य के समान मुक्ति का मार्ग बतलाने वाले है ऐसे श्री महावीर प्रभु मेरे सदैव दृष्टिगोचर रहे টি भै सदा उस वीतराग-शान्त मुद्रा का अवलोकने किया ॥ अताप्रं यच्चक्षुः कमरल-युगलं स्पन्दरहित । जनान्कोपापायं प्रकटयति वाभ्यन्तरमपि ॥ स्फुटं पूर्िरयस्य प्रशणमितमयी वाति-विमला । प्रहावीर-स्वाप्री नयन-पथगापी भवतु मे । -- जिन महावीर प्रभु के नेत्र रूपी कमलो का युगल लालिमा रहित और टिप्रकार से रहित है जो कि भनुष्यों को अंतरग की क्षमा को प्रकट करता है तथा जिनकी शरीर की आकृति प्रकट रूप में भी अति-शान्त व स्वच्छ है ऐसे श्री वीर प्रभु भेरे नेत्र रूपी मार्ग में विचरण करने वाले हों अर्थात आंखों से ओझल न होने दूं । नमनाकेद्राली मुकुट मणि भाजाल जटिल । लसत्पादाष्भोज ट्यभिह यदीर्य तनुभृताम्‌ । भवज्जवालाशात्यै प्रभवति जलं वा स्मृतमपि । पहावीर स्वामी जयन पथगामी भवतु से ॥२॥




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