आर्योंद्देश्य रत्न माला | Aaryoddeshya Ratn Mala

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Aaryoddeshya Ratn Mala by महर्षि दयानन्द सरस्वती - Maharshi Dayanand Sarasvati

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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आय्यदिश्यरलमाला अनेक प्रकार कार्यरूप होकर वर्तमान में व्यवहार करने के योग्य होता है, वह पुष्टि कहाती है। ३८-जाति- जो जन्म से लेकर मरणपर्यन्त बनी रहे, जो अनेक व्यक्तियो मेँ एकरूप ते प्राप्त हो, जो ईश्वरकृत अर्थात्‌ मनुष्य, गाय, अश्व ओर वृक्षादि समूह है, वे जाति शब्दार्थ से लिये जाते है। ३९-मनुष्य- अर्थात्‌ जो विचार के विना किसी काम को न करे, उसका नाम भनुष्य' है। ४०-आर्ष्य- जो श्रेष्ठ स्वभाव, धर्मात्मा, परोपकारी, सत्यविद्यादि गुणयुक्त ओर आय्यविर््तं देश मेँ सब दिन से रहने वाले है, उनको आर्य्य कहते है । ४ १-आच्यविर्त देश- हिमालय, विन्ध्याचल, सिन्धु नदी ओर ब्रह्मपुत्रा नदी, इन चारों के बीच ओर जहां तक उनका विस्तार है, उनके मध्य मेँ जो देश है, उसका नाम आय्यविरत्त' है । ४२-दस्यु- अनार्य अर्थात्‌ जो अनाडी, आर्ययो क स्वभाव ओर निवाप से पृथक्‌ डाकू, चोर, हिंसक कि जो दुष्ट मनुष्य है, वह दस्यु कहाता है। ४३-वर्ण- जो गुण ओर कर्मो के योग से ग्रहण किया जाता है, वह चर्ण शब्दार्थं से लिया जाता हे। ४४-बर्णं के भेद-जो ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य ओर शूद्रादि है, वे वर्ण काते है।




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