अमिट रेखाएं | Amit Rekhayen

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Amit Rekhayen by बनारसीदास चतुर्वेदी - Banaarseedas Chaturvediसत्यवती मल्लिक - Satyavati Mallik

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बनारसी दास चतुर्वेदी - Banarasi Das Chaturvedi

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सत्यवती मल्लिक - Satyavati Mallik

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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६ असिट रेखाएं * हमने सूयं को निकला हुआ देखकर पुकारा हैं, “मा-मा, নই सूरज निकः । ' ओर ज्रगक मां जल्दी-जल्दों दौडकर आती हें, বৃ अस्त हो जाता है ! मा यह कहती हुई लौट जाती, 'खर, कोई बात नहीं, ईश्वर नही चाहता कि आज भोजन प्राप्त हो ।/ और अपने कामो में व्यस्त हो जाती । े माताजी ` यवहार-कुशल थी । राज-दरबार की सब बातें जानती थीं। रनवास में उनकी बद्धिमत्ता ठीक-ठीक आंकी जाती थी। जब में बच्चा था, मुझे दरबार गढ में कभी-कभी वह साथ ले जातीं और बा मां साहब के साथ उनके कितने ही संवाद मुझे अब भी स्मरण है ।... १८८७ ईसवी में मेने मैट्रिक पास किया । घर के बड़े-बुढों की यह इच्छा थी कि पास हो जाने पर आगे कालेज में पढें । कालेज में प्रविध्ट 'हुआ; किन्तु वहां सबकुछ मुझे कठिन दिखने लगा ।... हमारे कुटुम्ब के पुराने मित्र और सलाहकार एक विद्न, व्यवहार-कुशल ब्राह्मण जोशीजी धे 1“? ताजी के स्वगेवासके बादभी उन्होंने हमारे परिवार के साथ सम्बन्ध स्थिर रखा। छुट्टियों के दिनो में वे घर आए। माताजी और बड़े भाई के साथ बातें करते हुए मेरी पढाई के त्रिषय में पूछ-ताछ की और सम्मति दी कि मुझे विलायत जाकर बेरिस्टरी सीखनी चाहिए, जिससे लौटकर पिताजी के दीवान- पद को सभाल सक्‌ । उन्होने मेरी ओर देखकर पृछा : ` “क्यों, तुम्हें विलायत जाना पसन्द है या यहीं पढ़ना ? मेरे लिए यह नेकी और पूछ-पूछ' वाली बात हो गई। में कालेज की कठिनाइयों से तंग तो आ हूं। गया था। मेंदे कहा, विलायत भैजो तो बहुत ही अच्छा | कालेज में शीघ्य पास हो जाने की आशा नहीं जान पड़ती।'' तब उन्होंने माताजी की ओर देखकर कहा--“आज तो में जाता हूं । मेरी बात पर विचार कीजिएगा ।” . बस मेने हवाई -किले बांधने आरम्भ किए। बड़े भाई चिन्तित हो गए । रुपये का क्‍या प्रबन्ध केरें ? फिर मुझ-जैसे नवयुवक को इतनी दूर कंसे भेज दें ?




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