भारतीय संस्कृति की प्रागैतिहासिक पृष्ठभूमि | Bhartiya Sanskriti Ki Pragaitihasik Pristhbhumi

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डी. एच. गार्डन - D. H. Gardan

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वीरेन्द्र कुमार सिन्हा - Veerendra Kumar Sinha

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१० भारतीय सस्कृति की अये तिहा सिक पृष्ठभूमि संकीणं कितु गहरा क्रोडचुना जाता था, जिससे दो या तीन अच्छे शल्कल-ब्लेड निकाले जा सक्रते थे कान रिष्तलोनेरेपेब्लेडो कौ चर्वाकी है जिनकी लम्बाई है फुट हुआ करतो थी तथा शत्कलं की समतन सतह के समकोण पर चोट देने के लिए समतल स्थान भी हु करता था + अब प्रश्न यह उठता है-लेवेलायश से संबंधित अफ्रीका के लेवेलायश- संबंधी इस बातो का भारत से क्‍या सबंध है? पहली बात तो यह है कि भारत में भी लेबेलायश 'महान्र कुठार-सस्कृति' का एक अभिन्‍न अग है ओर विक्टोरिया वेस्ट- तकनीक की प्रोटोलेबेलायश स्थिति के द्वारा इसका पता चलता है। यह सम्भव है कि भारत में भी रूवेलायश की लम्बी अवधि रही होगी । जितने भो शल्कल-ऋलेड दिखलाए अथवा वर्णित किए गए है, जो अऊपरी-प्रस्तरयुग में पाये जाते हैं, उनका आकार ऐसा दहै जिनसे यह मालूम पडता है कि वे लेबेलायशी तकनीक के द्वारा बताए गए थे । हमारे पास जितने भी प्रमाण है उनसे यह स्पष्ट रूप से पता चलता है कि औजार बनाने का यह तरीका कुछ सुधारों के साथ तबतक चलता रहा जबतक कि आगे चलकर ब्लैड और बूरिन (तक्षणी ) -उद्योगो का प्रादुर्भाव नही हुआ । इस स्थिति को प्रोटो-लघुपाषाणिक स्थिति कहा जा सकता है। अब हम पुन' अफ्रीका की ओर मुडे और यह देखे कि क्‍या वहाँ भी ऐसी स्थिति पायी जाती है जो पहले लेवेलायशो रही हो, पर आगे चलकर बह प्रोटो- लघुपाषाणिक मे निमज्जित हो गई । इसके लिए दक्षिणी मिस्र में उत्तर अफ्रीकी सेबीलियन-उद्योग का सक्षिप्त अध्ययन आवश्यक है। इस उद्योग के आविष्कारक एम० विगनाई ने इसकी तीन स्थितियाँ बतलाई हे, कितु इसको ओर लोगो का पर्याप्त ध्यान आइंष्ट नही हुआ । लीकी ने यह कहा है कि 'निम्नतम सेबीलियन के प्रारभिक शल्कल बनाने के क्रोड तथा तरीकों को देखकर लेवेलायशी तकनीक की याद आती है ।* उनके द्वारा उत्तरकालीन ऊपरी प्रस्तरयुग और मध्य तथा उत्तरकालीन सेबी- लियनयुग में इस स्थिति का निर्धारण भूवैज्ञानिक दृष्टि से हाल की है। वतंमान भरमाणो के अनुसार यह्‌ सही मालूम पडता है। जिस प्रकार ऊपरी सेबीलियन- लघुपाषाणिक युग अन्तत मध्य और निम्न एपी-चेवेलायशी सेबीलियन से निकला है, १ वान रियत लो, दि एबोल्यूशन आँव द ज्ेवेज्बाएश, पृ० ५२ २. लौकी, स्टोन एज अफ्रोका, पृ० ११९, और देखिए कैटन टौम्पसन जौ०, द ले बेलवा शिपन इंढस्ट्रीज ऑव ईजिप्ट, पृ० ११७ जहाँ कि मारकौ किष तथा पपौ -लेबेल्वा शिन 17 ॐ बोच सब पर जोर दिया गया है, प्रीसोहिंग्स ऑब प्रो-हिस्दो रिक सोसायटो, 005 ২5৯




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