समालोचन समुच्चय | Smalochna Smucchya

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Smalochna Smucchya by अज्ञात - Unknown

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about अज्ञात - Unknown

Add Infomation AboutUnknown

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
1 नि ~+ १) ) ^ ट) “দহ লি লাল की नापा, कवा की उत्मा ओर सिखने की भाषा | घर से बोलने की भाषा को उन्होने कोई विशेष महत्व नहीं दिया। कावेत। की आया के रुम्बन्ध मे वे लिखते हक कण हे: ०. (+ “परश्चिमोत्तर ठेश के कबिता की भाषा बजमापा है. यह निर्शीत हो चुकी हे'आर- प्राचीन काल मे, लोग इसी भापा -में कबिता करते श्रा) है, परतु यह कह सकते है के यह नियम अकवर के समय के पथ नहीं था क्योकि, मुहम्मद मलिक जायसी ओर चरद की कविता बिज्ञ क्षण ही है और बसे ही वुलसीदास जी ने भी ब्रजभाषपां का नियम भग कर दिया | जो हो मैने आप कई बेर परिश्रम किया कि खडी ब्रोली मे कुछ कविता वनाऊ पर वह चित्तानुसार नहीं बनी इससे युद निश्चय होता है कि ब्रजभापा ही में कविता करना उत्तम होता है श्रोर इसी से सब्र कविता ब्रजभाप्रा मे ही उत्तम होती है |”? हक हे सु भारतेन्दु ते ुन्धेललरुड की बोली, नागमापा, पंजाबी भाषा, नई पजावी, माडवारी; उर्दा मिली प्राचीन कविता, ठलसीदासजी क कविता, बेसवारे- की कविता, बंगभाषा को कविता, और माथल्ली की कविता के उदाहरण देकर यह सिद्ध किया है कि कब्रिता के लिए सबसे उपयुक्त मापा ब्रज-मापा ही है| वे नई मापा की कविता का के বা ডা পি उदाहरण देते हुए लिखते हैं : द “भजन क़रों श्री कप्ण का ।यल करके सब्र लांग | ভিজ होयगा काम औऑ छूटेया ,सब ভান || अब देखिये यह कसी भोडी कविता है मेने इसका कारण सोचा १. हिन्दी भापा, पृष्ठ २




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now