आचार्य श्री जवाहरलाल जी | Acharya Shri Javaharlal Ji

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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इस दशा मे उस महिमा को किस प्रकार अगीकार किया जा सकता है? इस प्रश्न का उत्तर यह है कि वैसा चमत्कार दिखाई न देने पर भी वह कल्पना मे आता है या नही? आप कह सकते हैं कि कल्पना मे आई हुई बात किस काम की? किन्तु अनेक बाते ऐसी होती हैं जो पत्यक्ष देखकर ही काम मे आती है और अनेक बाते ऐसी भी होती है जो कल्पना द्वारा ही काम मे आती है। भ अपनी यह बात बलात्‌ स्वीकार कराना नही चाहता, मगर यदि आप मेरे कथन पर गहरा विचार करेगे तो आप स्वय ही इसकी सत्यता को स्वीकार करने लगेगे। आज बुद्धिवाद का युग चल रहा है अतएव प्रत्येक बात बुद्धि की कसौटी पर कसी जाने पर ही मान्य होती है। पर भँ कहता हू कि आप मेरे कथन को हृदय की कसौटी पर कसकर ही स्वीकार कीजिए । अगर कोई वात्‌ हदय स्वीकार न करे तो उसे मत मानिये | ज्ञानी भी कहते है कि हमारी प्रत्येक वात को हृदय की कसौटी पर चढाने के पश्चात्‌ ही स्वीकार करो । जो बात प्रत्यक्ष नही है पर कल्पना मे आती हे उसे मस्तक मे किस प्रकार उतारा जा सकता दै? यह प्रश्न उपस्थित होता है । इसका उत्तर यह ह कि स्कूलो मे पठने वाले बालक रेखागणित मे भूमध्य रेखा की मोटाई मानकर एक रेखा बनाते हँ पर वास्तव मे भूमध्यरेखा मे मोटाई होती नहीं हे। जब भूगघ्य रेखा मे मोटाई नही है तो फिर उसकी कल्पना क्यो की जाती है? ओर वह किसलिए खीची जाती है? इसके लिए यह कहा जाता है कि भूमध्य रेखा बनाये विना, उसकी कल्पना न की जाय तो आगे काम ही नही चलता। पूण ब्रह्मचारी को समस्त शक्त्या प्राप्त हो जाती है । कोई भी शवित्त एस) हीं यचती जो उसे प्राप्त न हो । वह शक्ति भले ही प्रत्यक्ष दिखाई न दे पर यदि उसे शास्त्र की कल्पना का आधार प्राप्त है तो उसे मानने मे कुछ भी हानि नही है । भले ही वह कथन कल्पनायुक्त हो पर आप उस कथन कफो दृष्टि मे रखते हुए उस ओर प्रगति करो तो लाम ही होगा! जैसे रेखागणित मे भूमध्य रेखा को मान लेने से काम चलता है उसी प्रकार बरह्मचर्यं मे ही पूर्ण ्र्रचय॑ के आदर्श को अगीकार करना अनिवार्यं है फिर भले ही वह आदर्श कल्पता पर टौ अवलपित क्यो न हो! यह तो हुई पूर्ण ब्रह्मचर्य की वात । आइए अब यह विचार करे कि अपणं प्र्मचर्यं कैसा लेता है ओर अपूर्णं से पूर्ण की ओर किस प्रकार प्रयाण पया जा सकता टै? हेच र ক 1 न र ২ ২৬ সি ₹২৯৯ ২২০২৩ স্পট ৯১ ২ ২. जवाहर ज्योति विचारसार ५




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