अँधेरी कविताएँ | Andheri Kavitayen

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Book Image : अँधेरी कविताएँ  - Andheri Kavitayen

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मनोरथ जब अंधेरा घिरता है मेर मन डाल के टूटे पत्तेन्‍्सा नीचे गिरता है ओर आवाज सुनता हं मे डाल से अपने मन के टूटने की जमीन पर ओ सकने तक हवा का बदला हुआ स्पर्श भी अनुभव करता हैं जब इसरे टूटे पत्तों के साथ जा कर पड़ जाता है मेरा मन तच सघन अँधेरा बुद्धि को छूता है और बुद्धि सोचने के वजाय तथ्यों को उकसाती है कल्पना को और कल्पना अजीव-अजीब सम्मावनाएँ सोचती है एकाध वार रुूगता है जवं मन नहीं रहा शरीर में तो बिना मन के इस शरीर को अंधेरी कविताएँ




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