परशुराम-पदावली | Parshuram-Padawali
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
382
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)हिन्दी के भक्ति-साहित्य की अनूठी निधि है, तथा परशुरामदेव भक्ति-
कालीन मुक्तक-काव्य-परम्परा के भी श्रेठ कवि हैं जिनका-व्यक्तित्व
भ्रत्यन्त महान है। परशुरामदेव राजस्थान के सर्वप्रथम निम्बार्काचार्य
हैं जिन्होंने निम्बार्क॑-सम्प्रदाय के अखिल-भारतीय-जगदुगुरू-निम्बा्क-
पीठासन सलेमाबाद (परशुरासपुरी) की स्थापना की है। आप ही
सर्वप्रथम वैष्ण॒वाचाय हैं जिन्होंने राजस्थान की खंखार-श्रद्ध -सम्य
जाति में वैष्णव-भक्ति का प्रचार किया है * तथा आपने यहां आई
हुई आाक्रांता मुस्लिम-संस्कृति को अपने चमत्कारों और सदुपदेशों से
उदार और अहिसक वन्ताया है । अब तक लोग यही समझते आये
हैं कि राजस्थान में कृष्णा-भक्ति का प्रचार करने वाले सर्वेप्रथम
वैष्णवाचार्य शुद्धाह तवादी वल्लभाचार्य हैं। परशुरामदेव बल्लभाचार्य
के जन्म से पूवे ही राजस्थान में पूर्वोक्त श्राश्नम की स्थापना कर
चुके थे तथा वहां से वेष्णवधर्म का सुव्यवस्थित प्रचार करने लभे
थे । इनके कृष्ण-भक्ति-परक गीत राजस्थान के जनमानस में मीरां और
सूर के पदों से पूवे ही गूजने लगे थे |
यह मेरे परमगुरू परणशुरामदेव की दिव्यात्मा का
ही श्राशीर्वाद टै तथा उन्हीं की दिव्य प्रेरणा का फल है कि
मै उनके इस साहित्य को स्वे प्रथम वार प्रकाश में लाने
में समर्थ हो रहा हूं । इस काव्य से समाज का अज्ञानान्धकार दुर
होगा, तथा परमसत्ता के प्रति पाठकों के हृदय में आस्तिकता का
प्रादर्भाभ होगा और साथ ही हिन्दी के भक्ति साहित्य में एक नया
ग्रालोक जग्रमगा उठेगा जिससे साहित्य-संसार में परशुरामदेव के महाव
व्यक्तित्व के दर्शन होंगे; और हिन्दी-इतिहास के नये पृष्ठों पर
परशुरामदेव का नाम स्वणक्षिरों में भ्रंकित होगा ।
१-जिला अजमेर में किशनगढ़ से १३ मील दूर ।
२-नामा दास कृत भक्त पाल-छप्पय १३७॥।
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