पंडितप्रवर टोडरमलजीकी रहस्यपूर्ण चिट्ठी | Panditpravar Todarmalji Ki Rahsyapurn Chitthi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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६११]; - कहा जाता है,कि इप्त द्वेपका इतना -मर्यकर- परिणाम क्षाया षि ज्ञाने उपे हुये स्ने भदक दी मस्त होनाना पढ़ा । विधरमीं विद्वान इष्वासे रजा भमावित होगमा लीद उ परिण/मछरूप उन्हें प्राणदण्ड दिया गया | , पण्हितप्रवर टोडरमझनी एकनिएठ होकर গল্প छिखने बेटे ये। वे घपने कार्यमें इतने लीन दोजाते थे कि इन्हें खानेपीनेकी भी सुध न रहती थी | इस विषयर्मे एद्ध जन्भरुति है कि वे जब एक ग्रम्भकी भाषा टीका छिसत रहे थे तब ६ मद्वतक डनक़ी माताने मोजनमे नमह नह दाला था! किन्तु कार्यल!ग द्ोनेसे पण्डिसजी स्वादका भनुमव नरष करमे पाये | लेकिन जन उनका प्न्य समाप्त होगया तरवे ठप्त दिन मोजन करते समय वेके फि माताजी] भान दारे नम वर्यों नहीं डाझा ! उत्तमें पातानीने कहा कि ' मैं तो ६ माहसे नमक नह डार दही थी । दष षटनातते धीर प० 111 कार्यतन्मयता ज्ञात होती है । * पण्डिकनीके' जन्म-मरणका टीढ़ संवत्‌ तो क्षमीतक যার नहीं होपका ই, চিত্ত गोमदसारकी टीकाकी प्शस्तिमें उसने - भपना सम्रय और कुछ परिचय, दिया है। एक दोहा छन्द उने प्तामहका नाम रमाएति भौर पिति नाम ज्ोगीदास ढिखा है। उरशा भय मावपाण ( केहन्य भये) मी निकलता है| यथा रमापति स्तुत गुन जनक, जाको जोगीदाप । सोद मेग भाने, पारे, मगट शकाश ॥ ३० ॥ পৃ =... 1. -ंहृष्टि भधिक्ार पत्र:२०४




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