पगली | Paglii
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
12 MB
कुल पष्ठ :
116
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पहला ब्रल्लाप
সস
চে
वेद-वाद ज्ञानादि बादि के प्रेम-प्रथा प्रगठटाऊं ।
“हरि ले बीन लीन डे तुव छीबि, नित नव शुन-गन गाऊ ॥
उस कृपटीको अपबस कर लेना ही तों कठिन है । किस
अर्थका मेरा यह मनोराज्य । अरे, हाँ,
केसेहुं जो अपबस करि पाऊँ।
गाना फिर सुनाऊँगी। अभी तो एक वेदान्तीको कथा
सुनाती हैँ । सुनो--एक दिन एक ज्ञानी कहो या विज्ञानी कटो,
वेदान्ती कहो या द्र त-अद्धौ तवादी कटो, अथवा ई'ट-पत्थर ऊख भी
कहो - सुमे विश्वनाथवावाकी पुरीमें मिला । बात-बातमें गद॑न
खठा-उठाकर उपनिषद्, ब्रह्मसूत्र ओर गीताके प्रमाण दे रहा था ।
ओर सुन छो, कहता था, अह्ह्मास्मिः मे ब्रहम हँ । निगोड़ं का
बापमी कभी ईश्वर-परमेश्वर हुआ दोगा! दै, देखो-तुम्दीं
बताओ, जिसे ब्रह्म-साक्षातकार हो गया, वह संसारभरको
यकबास काहेको करता फिरेगा ? ब्रह्म तो मन-वाणीसे परे है न !
सैया, में ठद्दरी पगली । उस वेदान्तीपर ज्योंही में! सहजस्वभावसे
गालियोंकी पुष्प-वर्षा करने छंगी, त्योंही हरामजादा अपने टकेसेर-
वाले ब्रह्मवादको पोथिर्योके बस्तेमें बंद करके मुझ पगछीपर
बेतरह बिगड़ उठा । मेंने उसे एक गाली दी, तो उस ब्रह्ममूतने
मुमके पचास गालियां दीं । में खिलखिलाकर हँस पड़ी । और मेरा
आऑय-बायँ-सायँ सुनकर वह ब्रह्मवादी भयमीत हो भाग गया ।
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