रामभक्ति शाखा | Ram Bhakti Shakha
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
56 MB
कुल पष्ठ :
554
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)होती है | प्रताप और सौन्दर्य के पुजीभूत रूप राम, शक्ति, शील और सौन्दर्य को
एक साथ अपने व्यक्तित्व में धारण किये हुए एक आदर्श राजा थे। सस्कृत की
इन दो धातुओं के प्रारम्भिकं अक्षर 'रा' से राम शब्द के 'रा अक्षर की उत्पत्ति
रामपूवंतापनीय उपनिषद् मानती है । मही' शब्द के দা से राम का भम बना
हुआ है । मही , पृथ्वी पर राम को यह् आदशं लीला प्रसारित हुई थी | वे
दृष्टो ओर राक्षसो का मरण बन कर पृथ्वी पर अवतीणं हृए थे । इमीचिए राक्षस
के रा' ओर मरणः के म से भी यह उपनिषद् হাস शब्द की व्युत्पत्ति समन्तौ
है । अभिराम (सुन्दर) शब्द से भी राम' शब्द की व्युत्पत्ति হুল उपनिषद् मेदी गयी
है। इस व्युत्पत्ति के अनुसार भी सौन्दयं के हारा जगत् को आकर्षित कर लेने
वाला, राम का गुण व्यजित होता है । राहु के समान, मनसिज (चन्द्रमा) को ग्रस्त कर
लेने वाला अर्थ बतलाने के लिए भी হা? উহা? জীব मनसिज सेम अक्षर को ले कर
इस उपनिषद् ने राम” शब्द की योजना की है। जिस तरह राहु, मनसिज (चन्द्रमा) को ग्रस्त
कर लेता है उसी तरह अपने अनासक्तिमय स्वभाव से राम ने मनसिज (काम) को पराजितं
कर लिया था । अपनी इसी अनासक्तिमय लोकसेवा से राम' मर्यादा पुरुषोत्तम थे | इस'
प्रकरण मे मनसिज शब्द का चन्द्रमा के पर्याय की तरह प्रयोग है। इसका कारण यह
है कि यजुवद के पुरुषसूक्त मे चन्द्रमा, विराट् पुरुष के मन से उत्पन्न होने वाखा माना
गया है-- चन्द्रमा मससोजात. | ।
राक्षसों को मनृष्य-रूप धारण करके दण्ड देने के कारण भी “হাম नाम की
व्युत्पत्ति इस उपनिषद् ने समझायी है । राक्षस के रा” और मनुप्य' के मम से यह
उपनिषद् राम शब्द को बना हुआ मानती है।
राज्य पाने वाले महीपालों को अपने आदर्श शील से आदशं व्यक्ति बनाने वाले
पुरुषोत्तम को 'राम' का नाम, यह उपनिषद् देती है । इस स्थिति मे. राज्य' से 'रा' और
'महीपाल' से 'म' को ले कर इस उपनिषद् में राम” शब्द की योजना की गयी है।
५ इस तरह राम की समग्रता के आधार पर यह उपनिषद् रामः शब्द के अर्थ को
व्यूत्पत्ति के आधार पर समझाती है। इन सब व्युत्पत्तियों के समाहित उपसहार के रूप
मे यह उपनिषद् मानती है कि ज्ञानी राम के नाम के उच्चारण से ज्ञान, अनासक्तिमय
राम के शील के ध्यान से वैराग्य तथा परम सुन्दर और समग्र ऐश्वर्यों की निवासभूमि
उनके सुन्दर शरीर की मूति की उपासना से ऐशवर्य की प्राप्ति होती है ।
इस प्रकरण के अत मे राम का शुद्ध दार्शनिक अर्थ बताते हुए यह उपनिपद्
कहती है कि शाइवत आनन्द के रूप, विश्व के समग्र चेतन्य के केन्द्र, जिस सनातन ब्रह्म
में, ध्यानमग्न हो कर योगी छोग परमानन्द मे लीन हो कर, रमण करते है, वहु परत्रद्म
परमात्मा ही राम है, और वही पृथ्वी पर राम के नाम' से अवतीणं होता है । यहाँ
† यजुर्वेद, अध्याय ३१, मत्र १२।
२ रामभवित शाखा
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