पुरानी मिट्टी नये ढाँचे | Purani Mitti Naye Dhache

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Purani Mitti Naye Dhache by वीरेंद्र मेंहदीरत्ता - Veerendra Mendahiratta

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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## २१ उसने अपनी सहेली के लिए प्रेज्नेंट ख़रीदना हे--वैसे तो अपनी माँ के साथ चली जाती, पर आज उसकी भी तबीयत खराब है ।” मिस्टर वर्मा ने थूक फेंकते हुए! कहा । “क्यों मिसेज्ञ वर्मा को क्या हुआ १” “होना क्या है, सारा दिन रसोई में घुसे रहने से हिन्दुस्तान की अस्सी फ़ीसदी औरतों को इस उमर में बीमारियाँ आ घेरती हैं। श्रच्छा तो दस बजे तक तैयार हो जाओगे न £ जी हॉ | 99 मिस्टर वर्मा चले गये । ज्ञान मिस्टर वर्मा के साथ की कोठी भें एक कमरे में रहता था। शुरू-शुरू में जब उसे नौकरी मिली तो विश्वविद्यालय के किसी होस्टल में कमरा न मिला। बड़ी कठिनाई से इस शरणार्थी परिवार से उसने यह कमरा लिया था। अब उसे फैलोज्ञ कोटं में स्थान मिल भी रहा था, पर न जाने कौन सा मूक श्राकषंण उसे यहाँ खींचे था । ज्ञान के कमरे मे एक चारपाई. एक लिखने वाली बड़ी मेज्ञ तथा एक कुर्सी के सिवा कुछ न था | मेनन पर किताबों का ढेर लगा था आर चारपाई पर कपड़ों का । नहाकर कमीज्ञ और पेंट तो ज्ञान ने पहन ली, पर कोट कहीं न मिल रदा था | सब कुं उलट-पलटकर देखने के बाद्‌ ज्ञान ने जब एकाएक रज़ाई उठायी तो कोट को नीचे दबा पाया } ज्ञान ने फटककर कोट को पहन लिया और मिस्टर वर्मा की कोठी की ओर चल दिया । रमा तैयार होकर अनमनी-सी दरवाज़े पर खड़ी ज्ञान के आने की प्रतीज्ञा कर रही थी। वह बार-बार सोच रही थी कि जो ममी कह रही थी, क्या सच है। पापा ज्ञान से उसकी सगाई करने की सोच रहे हैं । स्मा को इस सम्बन्ध का प्रस्ताव उस नौसिखिये दर्ज़्ी द्वारा सिली #% अनावश्यक पात्र




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