दक्षिण एशिया में नव-उपनिवेशवाद : भारत के विशेष सन्दर्भ में | Neo Colonisation In South Asia With Special Reference To India
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
26 MB
कुल पष्ठ :
299
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अध्याय-1
ऐतिहासिक परिदृश्य (6)
व्यक्तिगत मामले अधिकतर गैर सरकारी संस्थाओं द्वारा निपटाए जाते
थे।
धार्मिक क्षेत्र में निम्न वर्ग- अन्ध विश्वासों में डूबा हुआ था
जबकि अधिकांश बुद्धिजीवी वर्ग पर इस्लाम का प्रभाव कम पड़ा था।
परन्तु हिन्दू मुसलमानों में विचारों का आदान प्रदान हुआ और फलतः
हिन्दुओं में कई नये मतों तथा सम्प्रदायों ने जन्म लिया। साहित्य और
कला के क्षेत्र में हिन्दू-मुस्लिम शैलियों का बहुत अधिक सम्मिश्रण
हुआ। कानून के क्षेत्र में परस्परिक आदान प्रदान कम हुआ यद्यपि
सांस्कृतिक सामंजस्य हुआ पर वर्ग और सम्प्रदाय के कठोर सांचे में
जकड़े होने के कारण राष्ट्रीय चेतना जागृत नही हो पायी। न तो राज्य
ने इस चेतना को बढ़ावा दिया और न ही आर्थिक एवं सामाजिक
विकास ने प्रादेशिक देशभक्ति या व्यक्ति की समस्त देशवासियों के साथ
एकरूपता की भावना को बढ़ावा दिया।
भारत की भौगोलिक स्थितियों में विद्यमान विषमताओं, देश की
विशलता, आवामगन और संचार साधनों की प्राचीनता ने अतीत में
भारतीय प्रदेशों में परथककरण की प्रवृत्ति को बढ़ावा दिया और
राष््रीयता की भावना को पनपने नहीं दिया भारत में सामाजिक एवं
राजनीतिक एकता की कमी थी। सांस्कृतिक एकरूपता तथा राजनीतिक
प्रभसत्ता भी भारत के विभाजित करने वाले अवरोधों - जैसे दलों,
समाजोः जातियों एवं সালা को प्रभावित न कर सकी। जाति ग्राम
संस्थाएं एकीकरण का अटूट विरोध करती रीं । जाति एक सामाजिक
धार्मिक संस्था थी लेकिन इसका आर्थिक महत्व भी था। समाज यदि
सामाजिक धार्मिक दृष्टि से भिन्न रूप से जुड़ी जातियों का समूह था तो
? तारा चन्द्र भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन का इतिहास, पु. 3-4.
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