बौद्ध दर्शन | Baudh Darshan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जीवनी | गौतम बुद्ध ३ वर्षो तक योग और श्रनशनकी भीषण तपस्या की । इस तपस्याके वारे- में वह खुद कहते हे -- “मेरा शरीर (दुर्बलता )की चरमसीमा तक पहुँच गया था। जैसे . . . -श्रासीतिक (अ्रस्सी सालवाले)की गाँठें. . . वसे दही मेरे अंग प्रत्यंग हो गए थे ।. . . .जेसे ऊंटका पैर वैसे ही मेरा कल्हा हो गया था । जैसे . . . .सओंकी (ऊँची-नीची) पाँती वेसे ही पीठके कटि हौ गये थे। जैसे शालकी प्रानी कड़ियाँ टेढ़ी-मेढ़ी होती हैं, वेसी ही मेरी पंसु- लियाँ हो गई थीं। .. . .जसे गहरे क॒एंमें तारा, वेसे ही मेरी आँखें दिखाई देती थीं ।. . . . . . जैसे कच्ची तोड़ी कड़वी लौकी हवा-धूपसे चुचक जाती है, मुर्का जाती है, वैसे ही मेरे शिरकी खाल चुचक मुर्का गई थी ।. . . . उस अनशनसे मेरे पीठके काँटे और पैरकी खाल बिलकल सट गई थी ।. . . .यदि में पाखाना या पेशाब करनेके लिए (उठता) तो वहीं भहराकर गिर पड़ता । जव मे कायाको सहराते हुए, हाथसे गात्रको मसलता, तो . . . .कायासे सडी जडवाले रोम भड पडते । . . . मनुष्य. . कहते--श्रमण गौतम काला है कोई. . . .कहते--- . . . .काला नहीं ₹ঘাল? |... ,জীহু. . . .कहते---. . . .मंगुरवर्ण है । मेरा वेसा परिशुद्ध, गोरा (>-परि-अवदात ) चमड़ेका रंग नष्ट हो गया था।. .. . ४ ,, लेकिन, , . .मेंने इस (तपस्या) . .. .से उस चरम... दशन . . . .को न पाया । (तब विचार हुआ) बोधि(->ज्ञान)के लिए क्या कोई दूसरा मार्ग हैं ? ... .तब मुझे हुआ-- .. .मेंने पिता (+>शुद्धोदन) शाक्यके खेतपर जामुनकी ठंडी छायाके नीचे बेठ. . . . प्रथम ध्यानको प्राप्त हो विहार किया था, शायद वह मागे बोधिका हो।. . . . (किन्तु) इस प्रकारकी अत्यन्त कृश पतली कायासे वह (ध्यान-)सुख मिलना सुकर नहीं है ।. . . .फिर में स्थल आहार--- दाल-भात--ग्रहण करने लगा ।. . . .उस समय मेरे पास पाँच भिक्ष्‌ _ वही, पृ० २४८




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