मधु-सीकर | Madhu-Sikar

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Madhu-Sikar by रमादेवी श्रीवास्तव - Ramadevi Srivastav

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कुमुद ने रमेश की ओर देखकर कुछ हंस कर कद्दा “मेरा अनुभव क्या ! पर इतना अवश्य कह सकती हू कि मदिरा है बहुत बुरी चीज़” ! रमेश को यद्द बात काफ़ी बुरी लगी कि प्रकाश ने क्यो कुमुद से यह विषय छेड़ दिया--ओर उसने इस विषय का अ्रधिक बढ़ाव अच्छा न समझ कर प्रकाश से कहा “अच्छा प्रकाश ` चलो कुछ घूम फिर श्राव 'चली न १” प्रकाश कोट पहन कर दोस्त के साथ टदलने चल दिए ' कुमुद अपने गरहस्थी के कामोंमे व्यस्त दहो गड | >< >< ১৫ कुमुद ने प्रकाश को आते देख कर दाथ की उपन्यास चारपाई पर रख दी ओर उठ कर ब्रैठ गई ! पर जैसे दी उसने एक बार प्रकाश की ओर आँख भर कर देखा उसके रोए भिरक उठे--बद्द उठ कर पलंग के नीचे खड़ी द्वो गई ओर प्रकाश की एक एक बात बड़े ग्रोर से देखने लगी--वह् लाल लाल आंखें ! वह भराया हुआ चेहरा ! वद डगमगाते हुए. कदम ! यद्द सब बह क्या देख रही है, वह मन द्वी मन एक बहुत बड़ी ७




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