विश्वंभरा | Vishvambhara
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
150
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)परधभरा (५)
उपयुक्त त्यों पर फगशः विचार इसलिये प्रस्तुत किया जा रहा दे
ससे विद्वान पक्त या विपक्ष में अपने ब्रिचार प्रस्तुत कर किसी यथा निर्णंम
र पहुंच सकें। केवल दुरापद्मूलक सण्डन थ मण्टन दी इस विवेचल का
सय नादे!
१. प्रथम तथ्य पर सूद्म दृष्टि से विचार करने पर स्पष्ट प्रतीत होता
डरे कि थी विश्वनाथ द्वारा प्रतिपादित साकाइज्त्थ निकाइक्तत्यगूलक काव्यलिज
धर्थान्वरन्यास का भेद मद्र प्रतीत नही पवा, क्योंकि अर्थाग्दश्न्यास में मी
पमर्थनीय अर्थ सर्वत्र निराझाइूत नहीं होता। यहाँ मी पहुन जगह समर्थेनीय
धर्य में मन्देष्ठ चना रदता है। अतः उम मन्दे शी निग्॒क्ति के लिये समर्थ
হাস্য की अकाएणा यनी रहती दै। तेसेः--
श्रदनेको रणे यमो ग्तृरानानेर्शः ।
প্রলগাসা मन्ते टि यनि कल्पन বানান 0
इस पद्म में 'रामने एकाकी होने हुए भी अनेऊ राघमों को मार दिया!
इस समर्थनीय घावयादे में श्रपेला राम अनेश स्यक्तियों रो के से मारगकता है ।
इस अगुपपि दो संमारना होने से इस वा निरययात्मर পান পলা যা
पाटकः षो नही वन सव्रता! डिम्तु जद असहाय मदापुरषों में अनिर्दयनीय
पीजा था जाती है, इस समर्थक बाश्यायथ दा इपादान बरते है तब पूर्रोति
सन्देश बा निराबरण द्वोइर उसवा निःचयात्मद ज्ञान हो ताता है ! अतः
কাযা যান্যাধ में अनुप्पत्ति संभावनामूजइ सन्देध बा निशावरण इर
निशचयासमर जान के लिये अर्थास्तरम्यास में भी समर्थडइ कावदाएं हो चाइा-
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কাটে बुस (रद्रया गदर जडरशात।
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