विश्वंभरा | Vishvambhara

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Vishvambhara by ओंकारनाथ - Onkarnath

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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परधभरा (५) उपयुक्त त्यों पर फगशः विचार इसलिये प्रस्तुत किया जा रहा दे ससे विद्वान पक्त या विपक्ष में अपने ब्रिचार प्रस्तुत कर किसी यथा निर्णंम र पहुंच सकें। केवल दुरापद्मूलक सण्डन थ मण्टन दी इस विवेचल का सय नादे! १. प्रथम तथ्य पर सूद्म दृष्टि से विचार करने पर स्पष्ट प्रतीत होता डरे कि थी विश्वनाथ द्वारा प्रतिपादित साकाइज्त्थ निकाइक्तत्यगूलक काव्यलिज धर्थान्वरन्यास का भेद मद्र प्रतीत नही पवा, क्योंकि अर्थाग्दश्न्यास में मी पमर्थनीय अर्थ सर्वत्र निराझाइूत नहीं होता। यहाँ मी पहुन जगह समर्थेनीय धर्य में मन्देष्ठ चना रदता है। अतः उम मन्दे शी निग्॒क्ति के लिये समर्थ হাস্য की अकाएणा यनी रहती दै। तेसेः-- श्रदनेको रणे यमो ग्तृरानानेर्शः । প্রলগাসা मन्ते टि यनि कल्पन বানান 0 इस पद्म में 'रामने एकाकी होने हुए भी अनेऊ राघमों को मार दिया! इस समर्थनीय घावयादे में श्रपेला राम अनेश स्यक्तियों रो के से मारगकता है । इस अगुपपि दो संमारना होने से इस वा निरययात्मर পান পলা যা पाटकः षो नही वन सव्रता! डिम्तु जद असहाय मदापुरषों में अनिर्दयनीय पीजा था जाती है, इस समर्थक बाश्यायथ दा इपादान बरते है तब पूर्रोति सन्देश बा निराबरण द्वोइर उसवा निःचयात्मद ज्ञान हो ताता है ! अतः কাযা যান্যাধ में अनुप्पत्ति संभावनामूजइ सन्देध बा निशावरण इर निशचयासमर जान के लिये अर्थास्तरम्यास में भी समर्थडइ कावदाएं हो चाइा- कु क्षा होगी हे । इस 6तरा जब सामान्य द्वारा दिरेत्र छ समन म्थन्र में मी समर्थ तीय पाश्या रो আমর যাবা হী বাহ টি লহ টিটি হাহা शागाग्य थे सगधदन में ते छावाह क्ताहेगी टो उन কাটে बुस (रद्रया गदर जडरशात। মুছা হা হট বাইন পিন बापद অন্ধানী তা সবল হুহাপতে मे रुतो ष्टं स्तन ए (० ददः तर दुम्‌ हा पेष्दष हो दान है एन सरे दप दे (नुत) হব অনয পল 04 {९ से दम्प बः তা হা सूद ट. इरर्र्द धनप्र इ भसम सरण सन पर सन्दा रपट सदर म्र,




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