दास्ताने मुल्ला नसरुद्दीन | Daastaane Mulla Nasruddin
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
29.84 MB
कुल पष्ठ :
160
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)मैं तो एक मुसाफिर हूं चाचा । मुल्ला नसरुद्दीन बोला--*एक अर्से बाद
बुखारा आया हूं । काफी बदला-बदला-सा लग रहा है सब कुछ | हर
'ठीक कहतें हो बेटा--बहुत कुछ बदल गया है बुखारा में । यह जो
खण्डहरात तुम देख रहे हो, यह जीनसाज शेर मुहम्मद का घर था । एक जमाने
में मैं उनसे खूब वाकिफ था । शेर मुहम्मद मुल्ला नसरुद्दी न के वालिद थे | ख्वाजा
नसरुद्दीन के विषय में तो तुमने अवश्य ही सुना होगा !'
हि [ नसरुद्दीन उसके और करीब आ गया और बोला--'हां-हां चाचा!
उसके बारे में कुछ सुना तो है, मगर आप यह तो बताएं कि मुल्ला नसरुद्दीन
के वालिद शेर मुहम्मद और उनका परिवार सब कहां गए? मुल्ला नसरुद्दीन
कहां है?'
'धीरे बोलो बेटा, धीरे बोलो ।' कंपकंपी-सी लेकर बूढ़ा बोला---“बुखारा
में हजारों जासूस हैं । यदि उन्होंने हमारी बातें सुन लीं, तो हम लोग एक नई
परेशानी में पड़ जाएंगे । दवा परदेशी हो, तभी तो नहीं जानते कि बुखारा
में मुल्ला नसरुद्दीन का नाम लेनें पर भी पाबंदी है---सख्त पाबंदी । उसका तो
नाम लेना ही जेल पहुंचा देने के लिए काफी है मेरे बेटे । तुम जरा मेरे नजदीक
आओ--ैं तुम्हें की कि कर मूह हम्मद का क्या हुआ!
मुल्ला नसरुद्दीन की बड़ी-बड़ी आंखें घबराहट और खलबली से फैल गई,
फिर वह बूढ़े के करीब आया और मंन में ये मान लगाते हि उसके पिता
का क्या हुआ होगा. उसकी आंखें सोचने वाले अंदाज में सिकुड़ गईं।
बूढ़े ने खंगार-खांसकर अपना गला साफ किया, फिर मुल्ला नसरुद्दीन के
कान के पास सरगोशी-सी करने लगा--“बेटा! यह वाकया पुराने अमीर के
जमाने का है। मुल्ला नसरुद्दीन को उसकी हरकतों के लिए बुखारा से निकाले
. जाने के कोई अट्टारह-बीस महीने के बाद एक दिन अचानक यह खबर बुखारा
में फैल गई कि वह न बनकर दुबारा बुखारा में लौट आया है
.. “क्या यह खबर सच्ची थी?' ...:
अरे नहीं बेटा! अफवाह थी, अफवाह । कोरी बकवास । दे ढे ने उसी
राजदाराना अंदाज में रूसी की--'यह अफवाह अमीर के कानों तक भी
गई कि वह यहां गैरकानूनी धंधे कर रहा है । अमीर का मजाक उड़ाने
ले नगमे लिख रहा है और आवाम में बंदफैली फैला रहा है ।'
'फिर?' व्याकुलता से मुल्ला ने पूछा--'फिर कया हुआ बुजुर्गवार ?”
'होना क्या था बेटा! सिपाही नसरुद्दीन की तलाश मे जुट गए।
जमीन-आसमान एक कर दिया । बुखारा का चप्पा-चप्पा छान मारा, मंगर सारी
कवायद बेकार गई । कि ला नसरुद्दीन तो क्या, उसकी परछाईं भी उन्हें नहीं
मिली । आखिर होता तो मिलता न !'
'फिर...?' मुल्ला की बेचैनी और उत्सुकता बढ़ती ही जा रही थी।
16 0 मुल्ला नसरुद्दीन थक |
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