जैन सिद्धांत थोक संग्रह [भाग-२] | Jain Siddhant Thok Sangrah [Bhag-2]
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
316
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about श्रीमान हस्तीमल जी जेठमल जी - Shriman Hastimal ji Jethmal Ji
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)लघुदडक ६
तीन भेद ই- এ
१ सम्पग्दष्टि-दशनमोहनीय कम का उपशम, क्षय या
क्षयोपशम हाने पर जो जीवादि तत्त्वों की यथाथ श्रद्धा उत्पन
होनी है उसे “ सम्यग्दृष्टि ” कहते हें ।
२ मिथ्यादप्टि-दशनमोहनीय कम के उदय से जो
जीवादि तत्त्वो की विपरीत शद्धा होती है, उसे मिथ्यादृष्टि
कहते हु) 7
३ सम्थग्मिथ्यादष्टि (मिश्र )-मिश्र मोहननीय कर्म के
उदय से कुछ सम्यक और कुछ मिथ्यात्वरूप मिश्रित परिणाम
होता है, उसे ' सम्यग्मिथ्यात्व ' कहते है । शक्कर मिले हुए दही के
खाने से जसे खटमीठा मिश्रूप स्वाद आता है, वैसे ही जो
सम्यक्त्व और मिथ्यात्व दोनो से मिला हुआ परिणाम होता
है, उसे “सम्यग्मिथ्यादृष्टि ” कहते ह ।
१४ दशन दार
जिसमे महासत्ता का सामाय प्रततिभसि (निराकार
मलक) हो, उमे “दशन / कतं ह । दशन कै चार भेद ह~ '
१ चक्षु दशन~नेत्रजय मतिज्ञान से पहिले होने वाले
सामाय प्रतिमासं या भवलोकन को ' चक्षु दशन ` कहते ह् ।
२ अचक्षु दषन-नेत के सिवाय दूसरी इद्धियो ओर मन
सम्ब धी मतिज्ञान के पहटे होने वे सामाय अवलोकनं को
अचक्षु दशने ' कहते ह ।
३ अवधि दशन-अवधिन्नान से पहले होने वाले सामान्य
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