जैन सिद्धांत थोक संग्रह [भाग-२] | Jain Siddhant Thok Sangrah [Bhag-2]

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Jain Siddhant Thok Sangrah (Bh by

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about श्रीमान हस्तीमल जी जेठमल जी - Shriman Hastimal ji Jethmal Ji

Add Infomation AboutShriman Hastimal ji Jethmal Ji

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
लघुदडक ६ तीन भेद ই- এ १ सम्पग्दष्टि-दशनमोहनीय कम का उपशम, क्षय या क्षयोपशम हाने पर जो जीवादि तत्त्वों की यथाथ श्रद्धा उत्पन होनी है उसे “ सम्यग्दृष्टि ” कहते हें । २ मिथ्यादप्टि-दशनमोहनीय कम के उदय से जो जीवादि तत्त्वो की विपरीत शद्धा होती है, उसे मिथ्यादृष्टि कहते हु) 7 ३ सम्थग्मिथ्यादष्टि (मिश्र )-मिश्र मोहननीय कर्म के उदय से कुछ सम्यक और कुछ मिथ्यात्वरूप मिश्रित परिणाम होता है, उसे ' सम्यग्मिथ्यात्व ' कहते है । शक्कर मिले हुए दही के खाने से जसे खटमीठा मिश्रूप स्वाद आता है, वैसे ही जो सम्यक्त्व और मिथ्यात्व दोनो से मिला हुआ परिणाम होता है, उसे “सम्यग्मिथ्यादृष्टि ” कहते ह । १४ दशन दार जिसमे महासत्ता का सामाय प्रततिभसि (निराकार मलक) हो, उमे “दशन / कतं ह । दशन कै चार भेद ह~ ' १ चक्षु दशन~नेत्रजय मतिज्ञान से पहिले होने वाले सामाय प्रतिमासं या भवलोकन को ' चक्षु दशन ` कहते ह्‌ । २ अचक्षु दषन-नेत के सिवाय दूसरी इद्धियो ओर मन सम्ब धी मतिज्ञान के पहटे होने वे सामाय अवलोकनं को अचक्षु दशने ' कहते ह । ३ अवधि दशन-अवधिन्नान से पहले होने वाले सामान्य




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now