मोह माया | Moh Maya
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
226
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)३
पहाड़ियों की ओट में उषा ने अपना प् घठ उघारा। रजनी शर्मायी-
दार्मायी-सी अपने चेहरे को अपने काले आँचल से छिपाये पहाड़ियों को
गहरी खोह में छिप कर सिसकियाँ मरने छगी ।
खिड़की की दरार में से होकर उपा की किरणें मोहन को चारपाई
के दर्द-गिदं नाचने लगीं । नाचने लगीं भौर नाच नाच कर उसकी बफं
वन गहै, रगो मे गमीं भरने लगीं ।
और जब उसका जम-सां गया रक्त फिर धमनियों में दौड़ने छगा,
तो उसने अपनी पलक खोलीं, पैर फैलाए और एक अँगड़ाई ली | शरीर
की सारी रगे चर्ख उठीं।
रगे गरमा तौ अवश्य उठी थीं, पर सदौ अग्र भी उने मायी
हृ थी । उर कर उसने चल बरन गई, चारपाई को खडा कर दिया
ओर जमीन पर कागज्ञो के पास पड़े दीवट को देखा कि शायद उसमें
थोड़ा-सा तेल बचा हो, जिसे अपने बदन पर मलकर वह अपने को
काँपने से बचा सके |
पर दौवर सूखा पढ़ा था। उसमें पड़ी बत्ती राख हो गई थी और
तवे उसे याद आया कि तेल समाप्त हो जाने की ही बज़ह से वह उठ-
कर चारपाई पर आ गया था, नहीं तो,शायद रात मर जागता रहता,
जागता रहता, और कॉपत! रहता और लिखता रहता )
मन में शूत्य की-तो उदासी मर गर)
पैरों पर पढ़ती किरणों की गर्मी बढ़ती जा रही थी। खिड़को खोल
कर बद वहीं ज़मीन पर बैठ गया | किरण उसके शरीर को स्नान
कराने लगीं |
हाथ, पेर और सीने-को अपनी हथेलियों से रगड़्कर उसने अपने
शरीर में छिपी सर्दों को मी भगा दिया ।
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