मन की पवित्रता | Man Ki Pavitrata

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manko pavitrata  by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अपनी श्ोर ५ इन्द्रियों से भिन्न स्वयं की - अनुभूति करता है, उस समय श्रात्मा का दरीर व मन से एक प्रकार से मानों सम्बन्ध छूट जाता है। ४ निव्य सोनेसे.हमारा वाद्य.जगत से सम्बन्ध छूट जाता परन्तु स्वाप्निक जगत में मन जागता है। गहरी नींद में जब स्वप्न दीखने- भी. बन्द हो जाते हूँ ऐसी सुपुप्ति अवस्था में हमारा मन से भी सम्बन्ध छूट जाता है श्रथवा-अव्यवत्त मन रहता टै} यद्यपि वह्‌ श्रवस्थापूणं ` निविकतल्पालमक है परन्तु तव झात्मा सचेत न रहने से स्वयं का अनुभव नहीं कर पाती अर्थात्‌ झ्रात्मा नहीं जागती होती है। यदि ऐसी स्थिति में आत्मा जाथी हो तो वहीं धृयान एवं झानन्द की स्थिति है प्रथवा नींद भी ध्यान वन जाये । ऐसी स्थिति में शरीर বতা अथवा लेटा हो वह थक नहीं सकता । भरपियों का शरोर सोता है परन्तु आत्मा जागती है আসল: उनको सोने व जागने से कोई फर्क नहीं पड़ता । गज्ञानियों वा सोंतें रहना ही श्र प्ठ है क्योंकि वह जितने समय तक जागते हैं उतने द्वो समय तक जगत को नरकमय बनाने में ही उद्यमशील रहते हैं । ज्ञानियों के लिए सोना ब जागना दोतों.तुल्य हैं । परन्तु जञानियों का दारीर जब तक जागता है तब तक पृथ्वी को स्वग बनाने मे हो तत्पर रहता है ।




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