पद्म पराग | Padm Parag
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
498
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( ड )
श्या जनाव दोगे १ 'सूतन कपास जुखदेसे चमर थान अभी
बुना भी तहीं जा रह्य है और बजाज दै कि आाइकोंको खरीदनेकी
त्रबन दे रहा है। पर मेरी यह बात न मानी गई, छेख-सप्रहका
नाम-करण करके सूचना छाप दी गई कि “पद्मपराण” %
छप रहा दै! इत নই ভূনান্দী महक पाकर 'पद्म-पगग-
के प्राहक-मधुप गुजारने छगोे। माहकोंके तकाज का ताजियाना
कि पड़ने छा नि वातकरा डर था वही हुई | पर मे करता तो
क्या करता, कोई उपाय न सूता था, प्रसेक अरफेडेका जो
मनुभव अबतक मुभे हुमा था ओर चतुर व्यवसायी पुस्तक-
अकाशकोका जो व्यवहार देखा सुना था, उससे इस नये बेड
एडुनेकी हिम्मत न होती थो, सपने परायोको शिक्रायते सुनता
» था और चुप रह जाता था, अनुरोध ओर उपाहम्मोंकी बोछाड़
पड़ती थी, सिर झुकाकर मेरल जाता था। में इस दुःख-प्रद व्यापार-
को दिते थु देना चाहता था, पर यार लोग भूलने न देते
थे, कहींसे न कहींसे, कोई ने फोई याद दिलादी देता था--प्रसुप्
संस्कारको भठफा देकर जगाही देता था, भें इस छेड़खानीसे
नेग आ गया, छुटकारा पनेका उपाय सोचने छगा ।
$ लेख-सग्रहका यह नाम-करण संस्कार श्रीयत ९गिडत उदित
मिश्नजीने (जो उस सम्रय विल्लीमें थे) और पं० हरिशडूरजीने किया
ধম, লাচ্ছি 'शकर'जीने 'दायस-विजयके'--(जो मेरो सम्पादकमामें
भारतोदय में प्रकाशित हुआ था) --उपलहारम लिखा था-
“यादक-चम्वरोक समफेगे देख प्रसड़की पद्म-पराग”!
शकरजीकी इस सूक्तिने ही शायद यह नाम छक्राया था !
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