पद्म पराग | Padm Parag

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Padm Parag by पद्मसिंह शर्मा - Padamsingh Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ड ) श्या जनाव दोगे १ 'सूतन कपास जुखदेसे चमर थान अभी बुना भी तहीं जा रह्य है और बजाज दै कि आाइकोंको खरीदनेकी त्रबन दे रहा है। पर मेरी यह बात न मानी गई, छेख-सप्रहका नाम-करण करके सूचना छाप दी गई कि “पद्मपराण” % छप रहा दै! इत নই ভূনান্দী महक पाकर 'पद्म-पगग- के प्राहक-मधुप गुजारने छगोे। माहकोंके तकाज का ताजियाना कि पड़ने छा नि वातकरा डर था वही हुई | पर मे करता तो क्या करता, कोई उपाय न सूता था, प्रसेक अरफेडेका जो मनुभव अबतक मुभे हुमा था ओर चतुर व्यवसायी पुस्तक- अकाशकोका जो व्यवहार देखा सुना था, उससे इस नये बेड एडुनेकी हिम्मत न होती थो, सपने परायोको शिक्रायते सुनता » था और चुप रह जाता था, अनुरोध ओर उपाहम्मोंकी बोछाड़ पड़ती थी, सिर झुकाकर मेरल जाता था। में इस दुःख-प्रद व्यापार- को दिते थु देना चाहता था, पर यार लोग भूलने न देते थे, कहींसे न कहींसे, कोई ने फोई याद दिलादी देता था--प्रसुप् संस्कारको भठफा देकर जगाही देता था, भें इस छेड़खानीसे नेग आ गया, छुटकारा पनेका उपाय सोचने छगा । $ लेख-सग्रहका यह नाम-करण संस्कार श्रीयत ९गिडत उदित मिश्नजीने (जो उस सम्रय विल्लीमें थे) और पं० हरिशडूरजीने किया ধম, লাচ্ছি 'शकर'जीने 'दायस-विजयके'--(जो मेरो सम्पादकमामें भारतोदय में प्रकाशित हुआ था) --उपलहारम लिखा था- “यादक-चम्वरोक समफेगे देख प्रसड़की पद्म-पराग”! शकरजीकी इस सूक्तिने ही शायद यह नाम छक्राया था !




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