नेताजी संपूर्ण वाङ्मय खंड 5 | Netaji Sampurn Vangmay Khand 5

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Netaji Sampurn Vangmay Khand 5 by शिशिर कुमार बोस - Shishir Kumar Bose

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ररम स्म कड एकः अन्य देश मे प्रवक्तिठ हो सके इसके लिए विश्चय ही अपनी बहुत कुछ হুদা, मिध्याचार आदि को झोडने के लिए विवश्ध होगा दुनिया के अन्य दसो भी श्व का सान बढ़ेंगा। यदि 2 लाख अफ्रीकादासी हिंदू धर्म अपनावे हैं हो निश्वयस्येश भारीप हिंदुओं को ठाकत अफ्रोका में बढुंगी। यदि झास विरव में एक शब्ति के रूप সী এস चाहता है ठो हिंदू धर्म का प्रचार उम्त कार्य में भी सहायक होगा एफिया के डित देशों में इस्लाम धर्म प्रमुख है, उन्हें छोड़कर भाख ঈ হী अन्द स्याने में धर्म दया सम्यदा का प्रदार तथा प्रसार करने की चेष्य को है ठो फिर अफ्रीका के संबंध में ही हमें क्यों दुविधा होनी चाहिए? तौव सवपते कं कारण अग्रो तिवस भविष्य मे इनं धर्म महदह नहीं करेंगे। क्योंकि ईसाई धर्म स्वीकार करते के बाद लोग अपिकवर शष्द्रोहों হা जाते हैं और वे विदेशी विचाएं का अनुकरण करने लगठे हैं। इसलिए यदि अफ्रीक्ग দিল্লী किसी अन्य धर्म क्म नौ स्वकारेंगे टो अंदव: उन्हें इस्लाम धर्म स्वीकार करता पड़ेगा इस्लाम वारय करने से भौ কল জান होगा वे विदेशी विचायं कौ आमा यै चयी और साथ हो स्वयं अधिक शक्तिशाली और मंगठित रूप से उभर सकगे। दूसरे देशों के लोग हिंदू धर्म को किस অল स्वीकार करते हैं और ठससे उनके जीवन में क्‍या सुधार आग है, दह देखना वस्तुव; एक अदूघुत प्रयोग के रूप में बहुत सुखकर होगा 5.5.26 प्रचेन कालल प्रयगसे पूं नो ओर स्थिव पदेसो क्तौ न्यु मयने जम में अलग रही है। यद्यपि यह संस्कृति आर्य वैदिक मंसस्‍्कृति से प्रपाविद हुई है तथावि छसकी अपनी विशिष्टठा हैं) प्राम से प्रश्चिष को ओर अवस्थित प्रदेश ख्राद्यण धर्म का गद रहा है। किंतु प्रयाग से पूर्व की ओर के स्थानों में उद्यवादी विचारों मी प्रधतदा रही है। इस्त प्रदेश को पूर्ण रूप से दाद्मथ धर्म के के ने নাল উহ হল উরু নহী ক জা व स्वन्‌ इसी प्रदेश मं ब्रद्धय ध्म জি সনির उदय हुआ হল छार्मिक आंदोलनों के प्रपाव से छालावर में इस प्रदेश ये ब्रह्य धमं কা प्रभाव काफौ हद्‌ ठक घया इम संस्मृति का कद्र प्रम मे मगध अधवा ियिद्ा ञेवत्त আস, জিনা ছল पाटलिपुत्र थी। स्मयं दौद्ध काल मे मगध सदा मकि री! उव मग य्न मदा घटी दौ संस्मृति काकंद्र भौ मग्ध स्ट क गड अदेश चटा गक) चि अदौ सदर में हास होते के बाद भी मगध बहुत सन्य ठक मन्नुि काद बकर) ऋुछ समय पहले तक यदि क्स न्मे स्मृव भाषा तठया सम्स्त्रों का अध्ययन करता होटा था दी से मिथिला झादा आवश्यक होठा था। व्यालांदर में उत्यन्दाय হযল লী দিল को प्रमुखटा मिलो। यह एऐविहमिक शोध का विषय हो सकता है कि संयथ को मंस्कृत्रि का पयमव क्‍यों और कैसे हुआ जो भो জান ২ ভী লিন হি বাত टो साथरथ खूप से समझ में आती है कि जो लोग संस्कृति के प्रदारक थे, प्रोषक थे, वही ममाय हो रहे थे।




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