अध्यात्म कल्पद्रुम सार | Adhyatma Kalpdrum Saar

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Adhyatma Kalpdrum Saar by हरिशचंद घाडीवाल - Harishchand Ghadiwal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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९ (३) बन्दन (४) प्रतिक्रमण (3) कायोत्सग (६) पच्चक्खाण है आव- श्यक क्रियाएँ साधु तथा धावक दानों का फरनी चाहियें। ये शास्त्र सथा भगवान्‌ की बताई हुई हैं इनसे आत्मा निर्मेल द्ोदी है व पुराने पाप नप्ट हांत हैं। साधुओं के लिये इनके सिवाय द्विव साधना के और भी कुछ उपाय यताये ह - दपस्या करना त्रप्मचयं पालना, मन, घंचय, काया पर अकुश रखना, शरीर पर समता नहीं रखना पाँच समित्ति, दीन गुप्ति रख शुद्ध वर्वाव रखना, स्वाध्याय म रहना, अहद कार त्याग भिक्ता वृत्ति नवकलपी विहार करना मन बचन, फाया स क़रिसी को पीढ़ा नहीं पहुँचाना, शुद्धाचार मावना भाना, सोद्द रहित गहना। आध्म निरीक्षण भी करते रहना चाहिये कि वे अपना शक्ति फ अनुसार तप जप तथा अच्छे काम करते हैं था नहीं। इस प्रकार आत्मनिरीक्षण से जीव अनायास अपने पापों से मुक्त हो सकता है। पोडश अध्याय --साम्य सवोधिकार पर लिसा गया है। यहाँ सम्पूर्ण प्ररथ का सार दिया गया दै। समता प्राप्ति का फल बछाया है। सब जवबों पर, से वस्तुओं पर समभाव रसना चादिये | पौदूगलिक वस्तुओं से राम-देप नहीं करना, दोषी ग्राणी पर रुणा, गारी पर अव'फरण से आनन्द मानना, इन गुर्णों की प्राप्ति फे लिये प्रयास फरना । ये फतिपय साधन मानव जीवन फे पह्दे श्य हैं। प्राप्त थागवाई ण्ठा सदुपयोग करना 1 णमे जावन षो समवा फा जीवन फते ट । समता सय सासारिक दु'सों फा अब फरता है और समता सथ प्रकार फ दुखों की जड़ है। फपायों पर जय और रिपयों फा त्याग समता प्राध्दि का उपाय है। +कृतज्ञवा मानवता है! इस नीति शिक्षा छा अनुसरण करना प्रत्येक सत्तुरुष का पुमीव कत्तज्य है। इसी आशय से में अपने घनिछठ सुदृदर भी शिवप्रसाद फायरा के प्रति, जिसने इस पुस्तक फे प्रणयन में समाहित सदयाग प्रदान दिया है द्वार्दिक भामार प्रफट फरवा हूँ। साथ द्वी भी प० दानेशचद्र शास्त्री, भूतपूर्व मर्त दिमागाष्यत्त दयानन्द कॉलेज, अजमेर की भी सहयोगिवय को भुलाया नहीं जा सता, জি-ছীনি इस पुस्तक की पाएडुलिपि का यदत्रठत्र सशोधन फर इसे सवा गुन्द्र बनाने में अपना अमूल्य समय दिया है। अत उनके




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