मारवाड़ का इतिहास भाग - 2 | Marvad Ka Itihas part-ii

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मौारवाड़ का इतिहास उस समय मारवाड के बहुत से सरदार आकर इनकी सेवामें उपस्थित हो गए ओर जब वहां पर उनकी तरफ़ से नज़र निछावर हो गई तब मानसिंहजी की तरफ़ से भी उन सब का यधथोचित आदर-सत्कार किया गया । मैंगसिर वदि ७ ४. नवंबर को यह जोधपुर .के किले में प्रविष्ट हुए । इस पर पौकरन-ठाकुर सवाईसिंह ने निवेदन किया कि स्वर्गवासी महाराजा भीमसिंहजी की एक रानी देरावरजी गभवती है । यदि उसके गर्म से पुत्र उत्पन हुआ तो उसके लिये आप क्या प्रबंध करेंगे । यह सुन मानसिंहजी ने उत्तर दिया कि ऐसा होने पर मारवाड़ का आधा राज्य उसे देदिया जायगा ओर हम जालोर लौट जायँगे । परंतु इसके लिये बालक क। जन्म होने तक मीमरसिंहजी की उस रानी को किले में रहना होगा । यह शत सवाईसिंह ने न मानी । इसीसे मानसिंहजी उससे नाराज़ हो गए । इन दिनों मुगलों और मरहठों का प्रभाव नष्ट हो जाने से झंगरेजों की इर इण्डिया कंपनी बडुत कुछ जोर पकड़ चुकी थी परन्तु फिर भी अंगरेजों ओर मरहठों के बीच युद्ध हो रहा था । इससे बि० सं० १८६० की पौष सुदि मानसिंहजी ने उस सेना के श्रधिकारियों से कहला दिया कि हमारा विचार एक मास बाद कार्तिक वदि ३० दीपोत्सव १५ अक्टोबर को जालोर का किला खाली करें देने का है इसलिये तब तक युद्ध बंद रक्‍्खा जाय । यह बात सेनापति सिंधी इंद्रराज ने मानली । परन्तु अन्त में आ्रायस देवनाथ के कहने से मानसिंदहजी ने कुछ दिन अर मी किले में रहना स्थिर किया । इसी बीच कार्तिक सुदि ४ १६. अक्टोबर को महाराजा भीमसिंदहजी का स्वगवास हो गया । इस पर भीमसिंहजी के धायभाई शंमुदान भंडारी शिवचंद और मुददशोत ज्ञानमल श्रादि ने सिंघी इंद्रराज को लिखा कि एक तो स्वर्गवासी महाराज की एक रानी गर्भवती है दूसरा पौकरन-ठाकुर सवाईसिंह अब तक अपनी जागीर से लौट कर नहीं श्राया है इसलिये किले का घिराव न उठाया जाय । परन्तु सिंघी इंद्रराज और भंडारी गंगाराम ने इस पर कुछ ध्यान नहीं दिया और तत्काल युद्ध बंदकर मानसिंहजी से जोधपुर चलने की प्रार्थना की । इन्होंने भी उनकी प्रार्थना स्त्रीकार कर उनकी तसब्ली की और उन सरदारों के नाम भी जो महाराजा भीमसिंहजी द्वारा मारवाड़ से निकाल दिए जाने से कोटें में थ्रे खास रुक्रे भेज कर उन्हें लौट श्ानें का लिखा । १. मानसिंहजी के जोधपुर पहुँचने के पूर्व ही पौकरन-ठाकुर की सलाह से स्वगवासी महाराजा भीमसिंहजी की रानियां देरावरजी आर तुँवरजी गुसाइईजी की जागीर के गांव चौपासनी चली गई थीं । इसकी ख़बर मिलने पर मानसिंहजी ने सवाईसिंद को सममा कर उन्हें वापस बुलवा लिया । परन्तु यहां आने पर सवाईसिंह ने उनका निवास किले के बजाय नगर के बीच तलइटी के महलों में करवा दिया छै०२े




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