महाभारत के मुक्ति रत्न | Mahabharat Ke Mukti Ratn
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
130
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)धममें वर्धति वर्धन्ति सर्वभतानि सबंदा।
तस्मिन् हसति हीयन्ते तस्माद् धमं न लोपयेत् ॥
(श्ान्तिपवं, अ० ९०, इलो° १७)
धमे की वृद्धि होने पर सभीकी वृद्धि होती है तथा उसका हास होने
पर सबका हास होता है, अतः धमे का लोप नहीं करना चाहिए ।
२
अहवमेध - सहसरं च सत्यं च तुल्या धृतम् ।
अइवमेध - सहस्राद सत्यमेव विशिष्यते ॥
(अनृक्ासनपवं, अ० ७५, इलो० २९)
एक हजार अरवमेध यज्ञो ओर सत्य को तुला पर तोला गया तो हज़ार
अश्वमेधो की अपेक्षा सत्य को भारी, अर्थात् श्रेष्ठ, पाया गया ।
३
अरहिसा परमो धमस्तर्थाहिसा परं तपः।
आहसा परमं सत्यं यतो অল: সনলল।।
(अनु ०, अ० ११५, इलो० २३)
अहिसा परम धमं है, ओर अहिसा ही परम तप है, अहिसा ही परम
सत्य है; क्योकि इसीसे धमं प्रवृत्त होता है ।
User Reviews
No Reviews | Add Yours...