साधन - संग्रह - १ | Sadhan -sangrah-1

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Sadhan -sangrah-1 by भवानी शंकर - Bhavani Shankar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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धम | 9 केवक्ष सवाथं निमित्त नही कश्ना चाहिये! তথ रखता चाहिये कि $-- न भतो न भविष्योऽस्ति न च धर्मोएस्ति গুল । योऽमयःसवैभतानां জ प्राप्नोत्यभयं पद्म्‌ ॥ १८ ॥ सदाभारत तस्त पद अथ्यार २६९। जो खों छो अमय दान देता है ( क्ति को दानि नदीं करता है ) वड अभय पदवी को प्रात करता है और ऐसा घम न पूं का में कोई हुआ ओर न आगे होगा । जीवितं यः स्वयं चेच्छेत्‌ कथं सोऽन्यं घातयेत्‌ यदथदात्मानि चेच्छेत तत्परस्यापि चिन्तयेत्‌ ॥ २१ ॥ सहाभारत शरप्ति पवे अच्राय २४५८ ৪ जो आप जीना चाहता है चह दूसरे को कैसे घात करता है, ' जैसा अपने लिये दृच्छा करे वैसा हसरे के लिये भी करना चाहिये । वयांसि *-- प्रासा यथात्मनोऽमीषा भूतानामपि ते तथा | आत्मौपम्येन यूतेषु द्या कुर्वन्ति साधवः ॥ , दितोपदेश + 'ण जैसा अपने को प्रिय है चैखा दूसरे को सी प्रिय है, इस लिये साधु छोग अपने ऐसे दूसरे को भी जोन के सबों पर दया फरते हैं। जो ङु दानि हम लोगों को दूसरे के द्वारा होती ই অভ ইল छोगों के आंतरिक इंषघाऊ णकार स्वया का प्रतिफल है, हम रोगं दुसरे के शतु ই! জবঘলে भी दमसलोंगों के शत्र होते हैं। हम छोग आखेट के सुख के लिये, पेट भरने के लिये तथा अन्यान्य घ्यर्थ काथ्यों के लिये संखार में प्राणियों का नाश करते रै, अतपव 'वे भी हमलोगों की हानि करने में धाध्य होने हैं ओर उसो फारुण इम रोगो को खपंभय, व्याघ्रसय इत्यादि ग्होतेदे\ जो पुरुष फिसी की किसी परफार फी हानि करना नहीं चाहता और प्राणि ` भाव में सवात्सभावं सानकर उन पर प्रेम और दया रखता है




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