गीत पञ्चशती | Geet Panchshati

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Geet Panchshati by रविंद्रनाथ ठाकुर - Ravindranath Thakur

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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বা १ आमारे के निबि भाद्‌, संपिते चाइ्‌ आपनारे । आमार एइ मन गलिये काज भुलिये सद्धे तोदेर निये यारे । तोराकोन्‌ रूपेर हाटे चलेछिस भवेर बाट, पिद्ियं आदि आमि आपन भारे, तोदेर ओइ हासिखुशि दिवानिशि देखे मन केमन करे ।। आमार एड बांधा ट्टे निये या लुटेपुरे, पड़े थाक्‌ मनेर बोझा घरेर द्वारे-- येमन ओइ एक निमिषे वन्या एसे भासिये ने याय पारावारें।। एत ये आनागोना कं आदे जानाशोना, के आछे লাল ध'रे मोर डाकते पारे। यदि से बारेक एसे दाँडाय हेंसे चिनते पारि देखे तारे।। १८९० কপি পপ न~~ १. आसारे......आपनारे--मुझे कौन लेगा (ग्रहण करेगा) भाई, (मे) रातदिन तुम सबों की वह हँसी खुशी देख मन (न-जाने) केसा करता है; आमार.......पुटे--मेरे इस बन्धन को छिन्न-भिन्न कर (मुझे धूल में ) लूटाते-पुटाते ले जाओ; पड़े.....द्वारे--गृह के दरवाज़े पर मन का बोझा पड़ा रहे; येमन......पारावारे--जैसे उस एक क्षण में बाढ़ आ कर समुद्र में बहा ले जाती है; एत.......आनागोना--इतनी जो आवाजाही है; के.......जानाशोना---जाना “पहचाना (परिचित) कौन है; कें......पारे---कौन है जो मेरा नाम ले कर पुकार सकता है; यदि.......तारे--यदि वह्‌ एकबार आ हँस कर खड़ा हौ (तो) उसे देख कर पहचान सकता हूँ ।




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