प्रेम सुधा [भाग 2] | Prem Sudha [Part 2]

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Prem Sudha [Part 2] by प्रेमचंद जी महाराज - Premchand Ji Maharaj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अचार और विहर | [ ४ -~-------- -*- करने में आई जो भारतवर्ष की अतीत शिल्पकला की सहज ही स्मृति करा देती थीं। यहां का प्रतिध्चनि” नामक महल एक बड़ा विचित्र महल हे जिसमें काफी दूर से आवाज देने बलि की ध्यनि ज्यों की त्यों भ्रतिध्चनित होती है ओर ज्यों की त्यों श्रवण करने में आती है । ज्लोगों से यह्‌ भी बिदित हुआ हे कि यहां पर किसी समय जैना की एक लास जनसंख्या थी, जो आज कुल »-६ घर ही शेप हैं। यहां से सतपुड़ा पहाड़ का महाविपम घाटा उतर लम्बा रे विहार कर “सेंघवा” पहुँचे । रास्ते में कोई अपना क्षेत्र नहीं आता ह । आहार-पानी का बहुत परिपह सहन करना पड़ता है। यहाँ पर गुजराती ओर मारवाड़ी भाईयों के अनुमानत: १४-२० घर हैं। महाराज श्री के यहॉपर धर्मशाला में २-३ सार्वजमिक व्याख्यान हुए, फिर यहाँ से विहार कर सिरपुर पघारे | यहाँ पर भी आपके २-३ सार्वजनिक व्याख्यान सिनेमा हाल में हुए । यदाँ से महाराज श्री ने धूलिया की ओर विहार किया । सुनि श्री के घूलिया पहुँचने की सूचना पाकर कितने ही साधु साध्बीजी आपके पहुँचने से पहले ही धूलिये में एकत्रित हो गये। स्थानापन्न बयोबुद्ध श्षी माशकऋषिजी महाराज और .मंत्री श्री किशनलालजी महाराज तथा हरिऋषिजी महाराज आदि मुनिसमुदाय तथा कितनी ही साध्यियें विराजमान थीं और नवठाणे से आप भी पधार गये । बहुत ही परस्पर में धर्स प्रेम रहा। ऐसा प्रतीत होता




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