सूरज फिर निकलेगा | Suraj fir Niklega

Suraj fir Niklega by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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19 हरे दाप बी जिनावरों बी छोड...वल तेरी मानुस-णोर नवी मा आ भरेगी ^ और रो-बोल बर सिवाये-पिलाये जिनावरों को खोज ले जायेगे !! ১১১১৪ मर জানত ঘট चलने भर देर है. तुम कदुदा बोलोगें ही-२-मै जानू. নন वो नम देखेंगे! आज तो हमारे करन चार कम दस जिनावर है. ..भला कब तक दिन-० दानगी पर माटी दो-दो कर ठेवेदारों का भरना भरते रहोगे | अब तो हम तोन से चार भी तो हो जायेंगे !” इतना बहबर चदो ने गुजलाये आचल को ठीक कर अपने आपे को उसमे दाप लिया । “হী লী है ही...पर दिन-दानगी न बल, तो मजूरो छोड ठेकेदार बन जाऊ... वोन? “अरे तो ठेकेदार के सिर दे सीग होवे ? वो अपने काम में हुसियार, हम अपने बाम भें बसे । तुम क्षाज उस ठेकेदार से पूछ तो देखो के उम््‌त टीमे को तोड़ मादी फेकने बा ठेका हमे दे दे । हा करे, तो हम दोता माथा जोड़ हिमाव विठा लेगे के रोजाना की दिन-दानगी परे कित्ता मिलेगा और ठेके मे बित्ते दिन खरच के कित्ता पायेगे . जिसमें दो पैसे बनी मिलेंगे, वोई ठोव ।/ और यू चदो के चलाये चल कर ग्रणेमा ने टीमा तोड़ माटी फेंकने का तोन सो रुपये वा ठेका उठा लिया था । पर गेंती की पहली मार पथराई मादी की मोटी परत गो भुरभुरा कर रह गयी, तो गणेसा का माया ठनका । दूरी मार ठीक से न सधने पर उमने शिय्रा-जोड गाम तोल कर तोसरा भरपूर आघात किया । फिर भी दो मुट्ठी गारा घमक धर रह गया और टन्‌ बी टकार के साथ जो चिनगारी फूटी, तो गणेसा की आख को चमक बुझ गयी। उसने गधे से सटी, हाथ मे फावडा लिये पाम खड़ी चदो को खाक निजर से देखा और फिर घनाघन गेंती तोल धरती तोडमे में जुट गया | ठीक ही कडिपल जमीन थी। एक लम्बे दम की दृहरी सास खरच के भी गणेसा माथे पे पसीना तो ले आया, पर दो टोकरी मिट्टी नहीं उकेर सका। पसीने के तोल में भिट्टी को कम देख चदो पल भर को भीतर मे हिल तो गयी, पर तभी सभल उसने फावडे को तिरछा कर घरती पर बजा दिया 1 शणेसा दे; पसीने बे: साथ क्षरते दिल बानी के घोल---/अब धपा होगा ?'---को आखो-आखो मे समझ कर वह बह गयी, 'सारी टेकरी इत्ती कडियल नो'**इल-उत वित्ता-घालिस हसली-फसली है*“*तुम सुस्ताओ, लाओ***मुझे दो मेंती, मैं जुटती हू ॥' “अरे, परे हो ! चार चोट पे सुरताने सगे सो हो गयी ठेकेदारी | गणसा ने बहा ओर उसके हाथ को धटक दिया | ১ আহ কি 8৩ হাহ ইঠছাডাশরর তঘলী লহ ক লা सर पर उठती और ছিলি शिससी नेरी षये उ -घम्स कं घमगान चल पटी । उपर चदी उभरो-विदरों मिट्टी भर-भर टोकरी गधों वो पीठ पर लगे गुतदो मे भर रहो थी। घटे भर की लाग के दाद वही चार बम दस गधे खाद कर चदो ने ই ঘরে भी हार लगायी, লী गछेसा से उसे हाथ रोके आय भर देखा--गधे शी दे दे और




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