मुगल दरबार या मआसिरुल उमरा | Mugal Darbar Ya Maasirul Umra

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Mugal Darbar Ya Maasirul Umra by ब्रजरत्न दास - Brajratna Das

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( २ ) पीछे चटा । जब बुहानपुर के पास सेना पहुँची तब क्ज़िलबाश खाँ को एक सहस्न॒ सवार के साथ झ्ाहगढ़ में मार्ग की रक्षा के लिए नियुक्त किया | इसके अनंतर नवें ब्ष में बादशाह दक्षिण पहुँचे और जब तीन सेनाएँ तीन-बढ़े सरक्षरों की अधीनता में साहू भोसछा को दंड देने और आदिलशादी राज्य पर अधिकार करने को भेजी गईं तब इसका मनसब ढाई हजारी ५०० सबार तक बढ़ाकर इसे खानदौरों के साथ नियत किया । दसवें वर्ष में इसका मह्सबःबद़कर तीन -हजारी २००० सवार का हो गया और यह बरार के अंतर्गत पाथरी का थानेदार नियत हुआ | १३वें बर्ष में मनसब में एक हजार सवार की उन्नति के साथ यह सैयद मुर्तज्ञाखाँ के स्थान पर' अहमदनगर दुग का अध्यक्ष नियत हुआ | १०वें वष में इसे डंका मिला । १८वें वर्ष में खानदौराँ खाँ की प्राथेना पर इसके मंसब-के- ५०० सवार दोअस्पा सेअस्पा नियत हुए। २२वें वर्ष ( सन्‌ १०५८ हि०, सन्‌ १६४८ ई० ) में यह अहमदनगर में मर गया। प्रगट में यह कठोर स्वभाव का ज्ञात होता था। अच्छे स्वभाव तथा सहृददयता के साथ अपनी बुद्धिमत्ता से सांसारिक कार्यों को खूब समझता और बिना दूसरों के मार्ग-प्रद्शन के सब काम' अच्छी तरह कर लेता था । बड़े ढंग से यह कालयापन करता था। यह खाता बहुत था | इसके नौकर अधिकतर ईरान के रहनेवाले थे, जिन्हें अधिक वेतन देना पड़ता था और इस कारण व्यय के डिये इसकी आय पूरी नहीं पड़ती थी । इस कारण यह ऋणप्रस्त रहा करता था । इसको मृत्यु पर इसके योग्य पुत्र एरिज़ खाँ ने इसका ऋण चुकाया | इसका बड़ा पुत्र मिजी नज़फ अली देश




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