हमारे ज़माने की गुलामी | Hamare Jamane Ki Gulami

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Hamare Jamane Ki Gulami by श्री बैजनाथ महोदय - Shri Baijnath Mahoday

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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यंत्रालय--१ श्र बात थी जिसने उनको उन कारखानों में दिन-दिन भर मरने के लिए देहात से भगाया और श्पनी इच्छा के विंरुद्ध द्रव भी भगा रदी है ? इसः प्रश्न का उत्तर दी हमें शहर के मजदूरों की दुरवस्था का ठीक-ठीक फारण बता सकता है हाँ इंग्लैंड वेलजिंयम जर्मनी श्रादि देशों में ऐसे लाखों मजदूर हैं जो पुश्तों से कारखानों में काम करते आये हैं और झब भी वहीं काम करके वे श्रपनी जोवन-यात्रा तय कर रहे हैं | पर कया वे अपनी इच्छा. से वहां रद रहे हैं ? दरगिज नहीं | वे तो एक तरह से मजबूर होकर वहां रहते हैं । श्वश्य ही एक समय उनके पिंता दादा परदादा अपने प्रिय कृषपि-जीवन को छोड़ उसके बदले में शहर के कारखानों में कठिन परिश्रम का जीवन व्यतीत करने के लिए मजबूर किये गए. थे । काले मार्क्स कहता इन किसानों से बलपूर्वक इनकी जमीनें श्र जायदाद छीनकर उनको राह का भिखारी बना दिया गया | फिर कानूनों की रचना द्वास उन्हें केद कर कोड़े मार-मार श्वनेक प्रकार के कष्ट देकर उन्हें किराये की मजदूरी करने के लिए. मजबूर कियाः गया । इसीलिए शहर के मजदूरों की दुदशा को दूर करने का सवाल स्वभावत उन बुराइयों को हटाने के लिए भी हमें त्राकर्षित कर लेता है जो इनको शझ्पने प्यारे आामों को छोड़ शहर के खराब त्रौर गन्दे जीवन की ओर ढकेलने में कारणीभूतत हुई और दो रही हैं । अर्थ-शास्त्र यद्यपि सरसरी तौर पर हमें उनके इस निर्वासन का कारण तो बता देता है पर उसको दूर करने की चेपा नहीं करता । वदद तो केवल वर्तमान कल-कारखानों में काम करने वालों की झ्रवस्था को सुधारने का यत्न-मात्र करता है । मानो वह मान लेता है कि मजदूरों का वहां रहनाः




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