यज्ञ | Yagya
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4.42 MB
कुल पष्ठ :
92
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
काली पटनम रामाराव - Kalipatnma Ramarav
No Information available about काली पटनम रामाराव - Kalipatnma Ramarav
दंडमूडी महीधर - Dandmoodi Mahidhar
No Information available about दंडमूडी महीधर - Dandmoodi Mahidhar
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)यज्ञ 9 की तलाश में भिन्न-भिन्न प्रदेश चले गये थे। एक अनाथ पुत्री और उसके पांच बच्चों के साथ गोपन्ना अकेले उस गांव में रहने लगा था। श्री रामुलु नायुडु आजू-बाजूवालों की सहमति लेकर अपना गला ऊंचा करके बोला-- सभी में उपस्थित श्रोताओं से मेरी प्रार्थना है कि आप शांत रहें । मैं अपना भाषण आरंभ करने के पहले दो बातें आप को बताना चाहता हूं। सभा में बोलने के नायुडु के तौर तरीके नये लोगों को कुछ अजीब-सा लग सकता हैं । थोड़ी देर तक नीचे की तरफ देखकर जैसे संकोच कर रहा हो फिर सिर ऊपर उठाकर हंसते हुए बोला- मैं एक बात से स्वयं दुखी हूं और मैं नहीं जानता कि क्या में आपको भी दुख पहुंचा रहा हूं। शायद इसमें मेरी भूल हो सकती है या जिन्होंने समाचार पहुंचाया उन्होंने कुछ गलत समझा हो । जो भी हो सभा में मेरी गैरहाजिरी को लेकर कुछ गलतफहमियां फेल गयी हैं। इसका कछ सबूत है अथवा नहीं इस पचड़े में में अब पड़ना नहीं चाहता पर आप सब लोगों से इसके लिए क्षमा जरूर चाहता हूं। नायुडु ने मुस्कुराते हुए हाथ जोड़े । मुस्कुराते हुए ही वे बोले भी । मगर लोग एकदम चौंक पड़े। किसी ने कहा न न ऐसी कोई बात नहीं । अरे किसी ने बात ऐसे ही उड़ायी होगी टूसरे ने कहा । एक ने कहा ऐसी बातों की परवाह नहीं करनी चाहिए वह कोई बेवकूफ होगा जो ऐसा बोला हो -यों लोगों ने नायुडु को बताया । नायुडु ने सबकी सुरीं। फिर भी वह बोला- इसकी एक वजह है । वह मेरे निजी जीवन से संबंधित है । इस सभा में उसका विवरण नहीं दे सकता... । वैसे नायुड अपने निजी जीवन के बारे में आम सभाओं में जिक्र करने वाले व्यक्तियों में नहीं थे। हर व्यक्ति की सामाजिक जिम्मेदारी के अलावा अपना एक निजी जीवन भी होता है। इन दोनों क्षेत्रों से संबंधित कुछ कार्य कभी-कभी एक ही समय में संपन्न करने पड़ते हैं। कौन-सा कार्य पहले कौन-सा पीछे किया जाय इसका निर्णय करना मुश्किल हो जाता है कई बार। ऐसे संघर्ष के क्षणों में--यानी ऐसे असमंजस की स्थिति में-किसको प्रधानता देनी चाहिए इसके बारे में हमारे पूर्वन बहुत पहले ही एक निर्णय पर पहुंच चुके थे। जनता या सीताजी ? तुम किसको चाहते हो? जब श्रीरामचन्द्रजी से पूछा गया तो उन्होंने झट से जवाब दे दिया । किंतु श्रीरामुललु नायुडु सोलह आना मानव माः. हैं। आपको क्षमा करनी
User Reviews
No Reviews | Add Yours...