१९वीं तथा २०वीं सदी में यूरोप | 19 We Tatha 20 We Sadi Me Europe
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
46 MB
कुल पष्ठ :
459
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)4 19 वौं तथा 20वीं सदी में यूरोप
उनके हाथ में थे । इसके अलावा वे कुछ ऐसी राजसत्ता भी हथियाना चाहने थे
जिसमे पूवं काल मे उनको वंचित रखा रया था ।
क्रांति के समर्थक--उग्न राजभक्तों के विरोधी नरम दल वाले थे। इनकी
प्रतिज्रा थी क्रान्ति की रक्षा करना और क्रान्ति को जारी रखना, परन्तु क्राश्त की
भावना के साथ नहीं । उनका एक नेता कहा करता था कि हमारा दल आजादी
और शान्ति का मेल कराना चाहता है। हम चाहते हैं कि जिस राजवंश का गही
पर अधिकार है वह बना रहे और साथ ही क्रान्ति भी चलती रहे । इस दल का रुख
रूढि के अनुकूल था और उनकी नीति में कोई तत्व नहीं था । उम्र विचारों के साथ
इस दल की कोई सहानुभूति नहीं थी। विजेताओं के बल से जो राजवंश पुनः स्थापित्त
किया गया था उसको यह दल स्वीकार करता था और बादशाह के प्रति तब तक
वफादार रहने के लिए तैयार था जब तक बादशाह भी उन शर्तों को मानता रहे
जिनके अनुसार उसको गही पर बिठाया गया था । परन्तु उनका मुख्य ध्येय यह् था
कि क्रान्ति के द्वारा जो कुछ उनको प्राप्त हुआ है उसको वे दृढ़ता के साथ पकड़े रहें
और अपने हाथ से उसे निकलने न दें। उनका खयाल था कि यदि पुरानी सल्तनत
फिर स्थापित हो गई और साथ ही राजनीतिक, सामाजिक और धामिक परम्पराएँ
फिर जम गई तो एक पीढ़ी से, जो परिश्रम के साथ काम किया गया है, वह विफल
हो जाएगा ओर कौम को फिर गुलामी को ज॑जीरें पहननी पड़ेंगी । इन नरम दल
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