श्री गाँधी चरित मानस | Shree Gandhi Charit Manas
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
35 MB
कुल पष्ठ :
235
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)২৬১
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मंगलाचरण ।
देशवन्दना -
ब्यापक ब्रह्म एक अबिनासी , बिलु बरन स्नायु अतनु सुखरासी ¦
पापरहित सुचि परम कमीसा , अज अनिकार बिभू जगदीसा ॥
नियमवान सिरजे जग सारा , सकल पदारथ सुबिधि .संषारा ।
सत चित अर आनन्द सहावा , जा कर मेद् काह नहिं पावा ॥
न्यायसील अरु परमदयाल्ला , प्रनतपाल्त पातक जिन घाला ।
दुखनासक सुखदायक स्वामी , पापतापहर अन्तरजामी ॥
पुन्य - प्रभाउ ईस जगराया , सब जग मोह रही तुव माया ।
भिरचि जगत पाले अरु घाल , साजन-हित दानव-हिय साले ॥
तेजपुंज परमेस्वर , पूरन परमानन्द |
त॒व प्रसाद पावहुं प्रभो , कविता सक्ति अमन्द ॥१॥
तुच प्रसाद निरथन नुप होई , भूष अधन संपति सव खोई ।
तुव प्रसाद मृग केदरि मरे, छुद्र मसक गजराज पदर ॥
तुव प्रसाद लोचन लदि अधा , लखत समोद सकल जगधंधा ।
त॒व प्रसाद गिरिसेखर पंगू, धाबहि तुरत रहत जग दंगू ॥
तुच प्रसाद पावत गिर मका, पेखत मावु-प्रभा जड घूका।
(गांधि'-बिमलजसजलधि अपारा, हौं प्रय लघु इक मीन बिचारा ॥
चरित अथाह थाह किमि पावो , मृद् जथामति गुनगन गावौ |
अस करि कृपा देहु वरदाना , कारज सफल होय भगवाना |
'विचयाधर' मतिमंद हों , 'गांधि-चरन-रस - लीन |
तुव प्रसाद् बल पाय के , 'चरिता-रचन चित दीन ॥२॥
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